एक और प्रिंस:जो न बच सका !
Posted by सागर नाहर पर 25, जुलाई 2006
हरियाणा के प्रिंस के बच जाने से दुनियाँ भर में खुशी की खबर फ़ैल गई है, बिल्कुल ऐसा ही वाकया आज से लगभग तीन साल पहले गुजरात के मोरबी के पास में एक गाँव में हुआ था पर अफ़सोस उस मासूम बच्चे को नहीं बचाया जा सका था।
अपने मायके आयी उस मासूम बच्चे अजय की माँ खेतों में कपड़े धोने गई हुई थी, पास में लगभग २ साल के अजय को बिठा दिया और कपड़े धोने लगी। पास में एक सूखा बोरवेल था और खेत के मालिक ने उस बोरवेल के मुँह को बोरीयों से बांध दिया था, बोरीयां बारिश के पानी लगने से सड़ चुकी थी, मासूम अजय खेलते खेलते उस बोरिंग के पास चला गया और उस पर जैसे ही बैठने की कोशिश करने लगा, उस की माँ की नजर जब तक अजय पर पड़ती अजय उस पर बैठ चुका था, जब तक माँ दौड़ कर अजय के पास आती सड़ी बोरियाँ फ़ट गई और अजय सीधा उस बोरवेल के पाईप में लगभग २०० फ़ूट नीचे पहुँच चुका था।
सेना ने, मुंबई दमकल विभाग ने और कई विदेशी विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद बहुत कोशिश की अजय को बचाने की परन्तु लगभग तीन दिन की मशक्कत व्यर्थ हुई और आखिरकार मासूम अजय को नहीं बचाया जा सका। बाद में उस बोरवेल को मिट्टी से भर दिया गया।
तीन दिनों तक समाचार पत्रों, स्थानीय और प्रांतीय टी वी चैनलों में अजय ही छाया रहा, जब भी यह सब दिखता आँख से आँसू निकल जाते, खाना खाते समय अजय की बात याद आ जाती तो कौर गले नहीं उतरता था।
आज उस अजय की माँ के मन पर क्या बीती होगी कि काश उस का अजय भी बच पाता!
ऐसे दर्दनाक वाकये को भी लोग मजाक में ले लेते है, जिस माँ के बच्चे पर यह सब बीती हो वही इस दर्द को बयाँ कर सकती है। हमारे बच्चे को लगी मामूली खरोंच भी हमसे सहन नहीं होती, और कुछ लोगों को इस वाकये में भी व्यंग्य सूझता है।
सबको सन्मति दे भगवान….
वर्ड प्रेस पर यह नया चिठ्ठा निधि जी की मदद से संभव हो चुका है, निधि जी को हार्दिक धन्यवाद
निधि said
दु:खद वाक़या है दूसरा वाला। प्रिंस वाले पूरे घटनाक्रम में मुझे बच्चे की समझ और धैर्य पर भी सुखद आश्चर्य हुआ । अन्यथा इतनी छोटी और गहरी जगह में फँसने पर ५० घंटे एक बहुत लंबा समय है । घबराहट और रोने की वजह से उसकी मृत्यु भी हो सकती थी । जो भी हो, बच्चा बच गया तो एक अनोखे सुख का अनुभव हुआ । पर एक बात मुझे समझ नहीं आयी । इस घटना में ईनाम की बात कहाँ से आयी ? बच्चे को बचाने के जो प्रयास किये गये, बचने के बाद उसके इलाज का पूरा खर्चा सरकार के उठाने का निर्णय, इन सभी की मैं भी पक्षधर हूँ । किन्तु उसके बाद यह ईनाम की घोषणा पल्ले नहीं पड़ी । और वह इसलिये कि और भी ऐसी बहुत सी जगहें होती है जहाँ सरकार ५०-५० हज़ार रुपये दे कर पल्ला झाड़ लेती है जबकि कई बार त्रासदी बड़ी भी होती है । और यहाँ तो अंततः अंत सुखद ही रहा । यह पूरी बात मैने प्रिंस के घरवालों के लिये नहीं कही, मेरा प्रशन सरकार के निर्णय के ऊपर है ।
आशीष गुप्ता said
नाहर जी, जिन लोगों को इस वाकये से परेशानी होती है वो प्रिंस के दुश्मन नही। और कहने को तो आप ने उसके लिये प्रार्थना कर ली और दूसरों ने नही तो कोन सा तीर मारा? मुझे परेशानी पूरी घटना की विडंबना से है। क्या आप नही जानते कि हमारे देश मे लाखों प्रिंस रोज मरते हैं इससे भी आसानी से दूर किये जाने वालो कारणों से? कि उस बालक को और उसके परिवार को पैसा सिर्फ़ इसलिये मिल रहा है कि वो कुए मे गिर गया? अगर मैं आपसे पूछूँ कि क्या ये मेरा दोष है कि मैं कुए में नही गिरा और लाखों की बक्शीश से रह गया तो आप क्या कहैंगे? नागरीकों को बचाना सरकारी जिम्मेदारी है, पर एक जान की कीमत अन्य जानों से अलग ये जीवन की कटु विडंबना।
और अंत मे मीडिया की ताकत का ये कैसा उपयोग? एक बालिका को दिल्ली के स्कूल में दाखिला नही मिला, एक बच्चा बंबई मे विकृत हाथ से है और एक बच्चा हरियाणा मे कुए में गिर गया – और सारा देश रोज सड़क पे नंगे भूखे मरते बच्चों को भूल कर इनकी सेवा में लग गया?
नीरज दीवान said
घर से मस्जिद है बहोत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए..
बहुत से प्रिंस हैं जिनके लिए हमें संवेदना रखनी है और हरसंभव उनके उत्थान की कोशिशें जारी रखनी हैं. तरीक़ा जो हो किंतु उद्देश्य एक होना चाहिए. मीडिया ने इस मामले में जितना किया- मेरी नज़र में बहुत अच्छा है. बहुतेरों ने सबक़ भी सीखा होगा कि सुरक्षा (गढ्ढे वगैरह) हमारी ज़िम्मेदारी है. सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है लेकिन जागरूकता हम सभी की.
सागर चन्द नाहर said
आशीष भाई
मैने प्रार्थना नहीं की, उसके भाग्य में जो लिखा था उसे कोई टाल नहीं सकता था। मुझे तकलीफ़ उन शब्दों पर थी जोप्रिंस के परिवार्जनों के लिये लिखे गये थे, मसलन
राजकुमार से कोई जवाब नहीं मिला तो हमने चलो, उनके परिजनों से बात कर ली जाए। सबसे पहले हमने उनकी मां से बात की।
हम: आपका बेटा गड्ढे में गिर गया है, आपको कैसा लग रहा है।
मां: बहुत अच्छा लग रहा है। हमारी फोटो भी छापेंगे ना?
(हमने उनकी दांत निपोरते हुए फोटो भी खींच ली जिसे यह बता कर बाद में प्रकाशित करेंगे कि “दुख में चीखती राजकुमार की मां)।
मैने यह नहीं कहा कि उसे जो इनाम मिल रहा है वह सही है, लाखों प्रिंस रोज मरते है तो क्या उस प्रिंस को भी उसी तरह मरने के लिये छोड़ दिया जाना चाहिये था ? ना ही वह पैसा पाने के लिये गढ्ढे में गिरा था, अब पैसा जो मिल रहा है वह संयोग की बात है, हाँ सरकार की तरफ़ से जो सहायता राशि दी गई है वह अखरने वाली बात है।
हर जगह और हर बात में मीडीया को दोष देना भी ठीक नहीं,मुझे नहीं लगता इस बार मिडीया ने कोई गलती की है, कम से कम उस समय तो उन्होने फ़ालतू बातों/ समाचारों को प्रसारित नहीं किया।
यह कैसी विडंबना है कि अगर मिडीया ने इस समाचार को पूरा कवरेज नहीं दिया होता तो भी हम लोग चीखने लगते कि एक बच्चा वहाँ गिर गया है और टी वी वालों ने सुधि भी नहीं ली।
सेना बनायेगी "गड्ढे में से बच्चा निकालो दस्ता"! « ॥दस्तक॥ said
[…] नाहर on 29, March 2008 पिछले तीन चार सालों में अजय, प्रिंस, सूरज और वंदना जैसे कई बच्चे […]