सबको सन्मति दे भगवान
Posted by सागर नाहर on 2, अक्टूबर 2006
दो अक्टूबर हर वर्ष की भाँति आया और चला गया, गाँधीजी के नाम पर बड़ी बड़ी बातें हुई, राजकुमार हिरानी की फ़िल्म ” लगे रहो… के बाद तो गाँधी जी कुछ ज्यादा ही प्रसिद्ध हो रहे हैं ( जिन लोगों ने गाँधी जी सिर्फ़ नोट पर देखे थे, कभी नाम नहीं सुना), वे भी आज गाँधीगिरी की बातें कर रहे हैं।
पर अफ़सोस की बात यह है कि आज ही के दिन जन्मे एक महान नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री का भी जन्म दिन है जो किसी को याद नहीं आया !!!!
भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय, डाक विभाग के अलावा यूनियन बैंक ऑफ़ इण्डिय़ा सहित कई विभागों ने आज देश के प्रमुख समाचार पत्रों में गाँधी जयन्ति के उपलक्ष्य में बड़े बड़े विज्ञापन दिये पर इनमें से किसी भी विज्ञापन में शास्त्री जी नहीं दिखे।क्या गांधीजी के अलावा देश में कोई महान व्यक्ति पैदा ही नहीं हुआ?
देश की प्रगती में लालबहादुर शास्त्री का कोई योगदान नहीं?
सबको सन्मति दे भगवान
अन्त में आज के The Times of india, Hyderabad के मुख्य पृष्ठ पर छपी एक तस्वीर
कलयुग के रावण
समीर लाल said
अरे, यह कहीं मोटर साईकल का विज्ञापन तो नही?
शास्त्री जी तो काफी समय से यह आघात झेलते आ रहे हैं, और इस बात का भुगतान हमेशा करते रहेंगे कि गाँधी जी के जन्म दिन पर पैदा हुये.
संजय बेंगाणी said
शास्त्रिजी पर कॉग्रेस को सोचना हैं जो परिवारवाद में जकड़ी हैं.
मनीष said
सही बात point out की आपने !
नीरज दीवान said
गांधी की तुलना नहीं हो सकती. शास्त्री जी को भुलाया नहीं जा सकता. दोनों याद किए जाते रहे हैं. निसंदेह, अनुपात ज़रा ज़्यादा ही अंतर ले लेता है.
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह said
गाधी जी ने देश की आजादी मे योगदान क्या दिया। सम्पूर्ण देश का गांधीकरण कर दिया गया। जहां देखो गाधी ही गांधी, क्या औरो स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियो का योगदान नगण्य था। क्या मात्र गांधी की अहिंसा से देश आजाद हो गया। आज ऐसा बताया जाता है कि गांधी ने किया कमाल बिना खडग और ढाल, यह तो सोचना होगा।
प्रियंकर said
तस्वीर को देख कर तुलसी की एक अर्धाली याद आई : ‘रावण रथी विरथ रघुवीरा’
पर अन्तत: हारता तो रावण ही है भले ही वह रथ पर आरूढ़ क्यों न हो .
प्रियंकर said
दो महान व्यक्तियों की तुलना महान समझदारी की अपेक्षा रखती है . इसके सिवाय और क्या कहूं . नीरज ने भी इस ओर संकेत किया है पर इधर शोर-शराबे के इस युग में संकेतों की भाषा कम समझी जाती है. किसी गम्भीर अध्ययन के अभाव में अल्प ज्ञान और जनश्रुतियों द्वारा पुनर्बलित अधकचरी समझ पर आधारित कैशोर्य-सुलभ उत्तेजना हर तरफ़ तारी है . किसी गम्भीर विवेचन का अवकाश कहां है. वह भी अंतर्जाल जैसे आभासी माध्यम पर .
SHUAIB said
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह ने भी अपनी टिप्पणी मे कुछ point out किया है!!!!!
bhuvnesh said
नाहरजी आज के समय में शास्त्रीजी को याद दिलाने का एक ही फार्मूला है, राजकुमार हिरानी और मुन्नाभाय को इसका ठेका दे दिया जाय। फिर देखना लोग शास्त्रीगिरी के पीछे हाथ धोकर कैसे पड़ते हैं।