हमारे धारावाहिक
Posted by सागर नाहर on 9, फ़रवरी 2007
मनीषाजी ने आज अपने चिट्ठे में हिन्दी फिल्मों के सीन के बारे में बताया तो मुझे याद आया कि कमोबेश हिन्दी धारावाहिकों कि स्थिती भी कुछ इससे अलग नहीं है, बल्कि यूँ भी कहा जा सकता है कि हिन्दी धारावाहिकों से कहीं बेहतर है हिन्दी फिल्म, जिन्हें दो तीन घंटे ही झेलना होता है धारावाहिकॊं की तरह बरसों बरस तक नहीं। परन्तु इन बकवास धारावाहिकों ने महिलाओं को ऐसा दीवाना बनाया है कि बस पूछिये मत!! शाम छ: बजे नहीं कि धारावाहिक चालू हुए नहीं! जो रात ग्यारह बारह बजे तक भी खत्म नहीं होते:( 😦
हमारे धारावाहिकों की कहानियों में ज्यादातर सयुंक्त परिवार ही होते हैं। (लगभग सारे धारावाहिक)
उन सयुंक्त परिवारों में सास ससुर अच्छे होंगे पर उनकी एक विवाहित बेटी होती है जो अपना सारा समय अपने मायके में ही गुजारती है और उसका मुख्य काम एक ही होता है कहानी की नायिका बहू को किसी ना किसी तरह षड़्यन्त्र में फ़ंसा कर सबकी नजरों में गिराना या जेल भेजना!! (मायका, कुलवधू, कहानी.. क्यों कि…. आदि) किसी किसी धारावाहिक में यह महान काम सास ही कर लेती है ( कहीं किसी रोज)
नायिका हमेशा सुशील बहू ही होती है जिसके लिये अपने पति और सास ससुर का कहा मानना ही मुख्य काम होता है घर के सारे लोग सारा काम उससे पूछ कर करते हैं और इस वजह से बाकी के सारे सदस्य उससे जलते हैं(लगभग सारे धारावाहिक)
नायक भी एकदम पत्निव्रता होता है पर उसके असमय मरने के बाद पता चलता है कि भाई साहब ने एक-दुई ठो औरतों से और भी शादी कर रखी है।( कहानी..ओम और उसके सारे भाई, क्यों कि..मिहिर)
जरूरत पड़ने पर वह बहू ऑफ़िस या कारखाना भी संभाल लेती है और अपने पति- देवर या जेठ से ज्यादा अच्छा काम कर दिखाती है। (सारे धारावाहिक)
देवरानी अपनी ननंद से मिल कर अपनी जेठानी को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती है।(कुलवधू, कहानी घर घर की, क्यों कि….,कुमकुम, बा बहू और बेबी, एक महल हो सपनों का )
सौतेली माँ अपनी बहू के साथ भी यही करेगी पर सौतेला बेटा यानि नायिका का पति अपनी माँ की ही बात सुनता है भले ही वह जानता होगा कि माँ गलत है और उसकी पत्नी सही। ( कहीं किसी रोज, कुमकुम )
ज्यादातर लोग करोड़पति या अरबपति होते हैं पर उन्हें उनके परिवार की कोई बहू सबको बेवकूफ़ बनाकर उनकी संपति और घर पर कब्जा कर लेती है और सब सदस्यों को सड़क पर रहने को मजबूर होना पड़ेगा। और उन बेवकूफों को इतना भी पता नहीं चलता कि उनके खाते से एक ही चैक से २००-४०० या ५०० करोड़ रुपया निकाल लिया गया है। (कहानी घर घर की-पल्लवी, कहीं तो होगा, कुमकुम, एक महल हो…… आदि)
नायक को दीवालिया होने के बावजूद उसे अपने परिवार के बजाय अपनी प्रेमिका की ज्यादा चिंता रहती जिसने उन्हें चूना लगाया होता है। ( कहीं किसी रोज-सूजल)
धारावाहिकों में विलेन की कोई अलग ही स्टाइल होती है जैसे सिगार को नाक पर रगड़ना या जूते को अपने पेंट से चमकाना।( कहानी ….)
विलेन को कभी दिखाया नहीं जाता है उसे सिगार फूंकते हुए अपनी कुर्सी पर अंधेरे में बैठे दिखाया जायेगा, यानि चेहरा छुपाया जाता है। (सारे धारावाहिक)
नायिका जरूरत पड़ने पर अपने ही घर के किसी सद्स्य की हत्या करने से नहीं चूकती है। (क्यों कि …एवं अन्य )
धारावाहिक को तीन बार आगे बीस बीस साल आगे बढ़ाने के बाद भी प्रददिया सास जिन्दा रहती है और उनके पोते की बहू उर्फ़ नायिका के भी पोते हो गये हैं जो कॉलेज में तेज मोटर साइकल चलाकर नये नायक से हारते रहते हैं। (कहानी घर घर.., क्यों कि सास आदि)
बीस साल आगे बढ़ने के बाद नायिका के बेटों की बहू से ज्यादा जवान उनके बच्चे दिखते हैं, कई बार तो यह भी पता नहीं चलता की वह उसकी प्रेमिका है या उसकी दादी!!! (कहानी घर घर की- राजेश्वरी)
नायिका विवाह किसी से करती है, प्रेम किसी से और बच्चे किसी और ही के। तलाक चार बार लती है और विवाह छ: बार, तीन बार बिना किसी रिश्ते किसी के साथ रहने लगती है।( कसौटी जिन्दगी की-प्रेरणा)
नायिका बहू को फ़ँसाने के बाद उसकी ननंद या उससे जलने वाली महिलायें किसी गाँव की अनपढ़ पर उस नायिका की हमशक्ल लड़की को लाकर नायिका की जगह फ़िट करवाने की कोशिश करते हैं या फ़िट करने में सफल होते हैं तो उस अनपढ़ लड़की के तुरंत ही पंख निकल आते हैं और जिन्होने उसे उस जगह बिठाया उन्हीं से विद्रोह कर असली नायिका को अपना स्थान दिलवाने में मदद करती है। (कितना कन्फ्यूजन है)
सयुंक्त परिवार का एक सदस्य मानसिक रुप से औरों से पिछड़ा या पागल होगा(बा बहू और बेबी- गट्टू) या किसी काम का नहीं होगा पर उसकी शादी बड़ी खूबसूरत लड़की से होगी (कहानी घर घर की- कमल) जो उसे अपने प्यार से सुधार लेगी (कोशिश एक आशा, आजकल जी पर आ रहा एक और धारावाहिक जिसका नाम याद नहीं आ रहा )
आप भी इस लिस्ट को लम्बी बनायें और पंकज भाई जो नया धारावाहिक बनाने वाले हैं उसमें कहानी के लिये मदद करें।
Shrish said
वाह मजेदार अध्ययन किया आपने। पंकज ने भी भारतीय ओपेरा के दिलचस्प गणित नाम से ऐसा कुछ लिखा था।
अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा।
समीर लाल said
जब पंकज धारावाहिक बनायेंगे, कहानी आप लिखना…बहुत शोध किया है, कहीं तो क्रेडिट मिलना ही चाहिये. 🙂 बहुत बढ़िया, बधाई.
Tarun said
kya baat hai bhai, hum bhi next post isi vishay ko leke likh rahe thai ki beech me indi bloggies ke liye likhne baith gaye. isliye humari tippani humari agali post ko samjha jaaye 😉
Divyabh said
बड़े गहराई से देखा है इन धारावाहिकों को…अच्छा विश्लेषण!!
मनीषा said
अरे, मैं तो इस पर लेख तैयार कर ही रही थी। आपने बाजी मार ली।
खैर, अच्छा लिखा है, इतना अध्ययन और इतना अच्छा मैं नहीं लिख पाती। बधाई।
मनीषा
Vivek Gupta said
bha sahab…pahle to ye bataye ki jab aap ye saare dharavahik dekhte hain to fir unhe kos kyo rahe hain? aapko koi jabardasti dikhata hai kya?
सागर चन्द नाहर said
@ विवेक जी
मजेदार सवाल है, मैं इन्हें कोस नहीं रहा हूँ यह तो कुढ़न है, जिसे हमारी राजस्थानी में छीजना भी कहते हैं। मैं रात को १० बजे या दिन को १ बजे जब भी घर जाता हूँ हमारी श्रीमती जी अपना सारा काम निबटा कर इन धारावाहिकों को देखने में मस्त होती है, अब आँखों के सामने टीवी हो और ये बकवास धारावाहिक चल रहे हो तो कानों में तो रुई डाल सकते हैं पर आँखो में तो रुई नहीं ठूंसी जा सकती ना? अब जबरदस्ती कोई दिखाता नहीं फिर भी देखना पड़ता है।
पहले दो साल (आप विश्वास नहीं करेंगे) तक टीवी का कनेक्शन ही हटवा दिया था परन्तू हमारे ही मन में खुराफात हुई कि डिस्कवरी और हिस्ट्री चैनल देखेंगे और फिर से कनेक्शन चालू कर दिया, अब भुगत रहा हूँ 😦
सागर चन्द नाहर said
@ मनीषा जी और तरुण जी
टीवी धारावाहिकों को पर तो एक शोध ग्रंथ तैयार किया जा सकता है पर मेरे एक छोटे से लेख से आप अपना काम ना रोकें, आपसे अनुरोध है कि आप इसे शृंखला को जारी रखें।
पंकज बेंगाणी said
भाईसा,
गणित का अच्छा विश्लेषण किया है… साधुवाद आपको.
अब एक गाना गाइए.. सबको सन्मति दे भगवान… 🙂
अनजान said
वाह सागर जी,
बडे ही शानदार तरीके से आपने हर घर की मुसीबत के उपर प्रकाश डाला है । दिन भर की टेन्शन से थक हार के घर जाओ कि ये बोरि्ग टी. वी. सिरियल चालू,, और अपने राम तो भारी करन्ट आता है । रोज रोज भला ये क्या ?
अनुराग said
मैं इन धारावाहिकों पर एक आध्यात्मिक शोध कर रहा हूं, रिपोर्ट शीघ्र ही पानी के बताशे पर आने वाली है.
🙂
अतुल शर्मा said
मैं खुशकिस्मत हूँ कि मेरे घर पर केबल कनेक्शन नहीं है। मेरे जिन मित्रों के घर केबल है उनका कहना है कि काम से घर लौटना हो तो रात को शाम 7 बजे से पहले या रात 11 बजे के बाद घर जाना चाहिए क्योंकि उस समय घर गए, तो न तो ठीक भोजन कर पाएँगे या फिर वे सब धारावाहिक एक के बाद एक देखना होंगे जिनकी नायिकाएँ कर्कशा, कुलटा, कपालिनी, करमखोड्ली, कलमुँही, कटखनी आदि के रूप में प्रस्तुत की जातीं हैं (चूँकि लगभग सभी धारावाहिकों का नाम ‘क’ से शुरु होता है इसलिए ये नाम दिए)।
mamta said
इसमे कोई शक नही की आपने काफी अच्छे से सभी का विश्लेषण किया है पर हम एक जगह नाम सुधारना चाहते है आपने कहीँ किसी रोज़ – सुजल लिखा है जबकि सुजल कहीँ तो होगा मे था।