मेरे मनपसन्द धारावाहिक
Posted by सागर नाहर on 15, फ़रवरी 2007
मेरा पिछला लेख हिन्दी के बकवास धारावाहिकों पर था, परन्तु मैं आज आपको मेरे मनपसन्द कार्यक्रम के बारे में बताना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि टीवी पर एकता कपूर के सास- बहू और षड़यंत्र ब्राण्ड और जिन चुटकुलों पर कमर में गुदगुदी करके भी हँसी नहीं आती उन पर सिद्धू हँस हँस कर लोटपोट होते हों( कई बार तो प्रतियोगी के ” नमस्ते सिद्धू जी ” बोलने पर ही सिद्धूजी हँसने लगते हैं) इस तरह के ही कार्यक्रम आते हों, कई बहुत ही अच्छे कार्यक्रम भी आते हैं।
मेरा पसन्दीदा कार्यक्रम की लिस्ट में दो तो डिस्कवरी चैनल के कार्यक्रम हैं, पहला तो है आई शुडन्ट बी अलाईव (हिन्दी में) I Shouldn’t Be Alive इस कार्यक्रम में साहसिकों के द्वारा मुसीबत में फ़ँसने और बचने की घटना का पूरा नाटकीय रूपान्तरण बताया जाता है और साथ ही उन साहसिकों का साक्षात्कार भी बीच बीच में बताया जाता है।
एक अंक में कहानी कुछ यूं थी एक कबीले की खोज में चार साहसिक अपने घर से निकलते हैं और जंगल में भटक जाते हैं। बाद में उन में झगड़ा होता है और दो नदी मार्ग से जाने की जिद करते हैं और दो थल मार्ग से। उस कार्यक्रम में जल मार्ग से आगे बढ़ने वाले साहसिकों पर पड़ने वाली मुसीबतों को बताया गया था कि कैसे वे दोनो भी अलग पड़ जाते हैं। लगभग 7-8 दिन तक भूखे प्यासे और लगभग मरणासन्न अवस्था में भटकने के बाद वे दोनों तो आपस में मिल जाते हैं परन्तु थल मार्ग पसन्द करने वाले नहीं बच पाते।
कल रात को बताये अंक में एक वन विशेषज्ञ पायलट का छोटा विमान अफ़्रीका के जंगल में टूट जाता है, और उनके दोनो पाँव की हड्डियाँ टूट जाती है और बुरी तरह से घायल हो जाते हैं कि चलना तो ठीक करवट भी नहीं बदल सकते। पूरी रात कैसे उन्हें उस भयानक जंगल में गुजारनी पड़ती है बताया गया था। एक बार तो अफ्रीकन शेर उनको शिकार करने वाला ही होता है कि वे लगभग अपाहिज हालत में अपने दिमाग से शेर से बचते पाते हैं और दूसरी बार लकड़बग्घे से। इतना रोमांचक कार्यक्रम थे वह कि उस को यहाँ लिखने से अनुभव नहीं किया जा सकता बस देखना होता है। एक अंक में कुछ साहसिक कम्बोडिया के जंगलों में ख्मैर रूज के सैनिकों के हाथों पड़ जाते हैं और बड़ी मुश्किल से बच कर बाहर निकलते हैं।
मेरा दूसरा पसंदीदा कार्यक्रम है (हनी वी आर किलिंग दी किड्स) Honey we are killing the kids यह कार्यक्रम बच्चों के मोटापे और उनकी आदतों पर आधारित है। इस कार्यक्रम में बच्चों की मोटापे की परेशानी से गुजर रहे किसी परिवार को स्टूडियो में बुलाया जाता है, और सूत्रधार डॉ लिजा हार्क उनसे बच्चों की आदतों और खानपान के बारे में जानने के बाद कम्पयूटर की विशालकाय स्क्रीन पर बताती है कि बच्चे बीस साल से लेकर चालीस तक के होने पर कैसे कैसे दिखेंगे। यह बहुत डरावना अनुभव होता है माता पिता के लिये।
फिर शुरू होता है डॉ लिजा का उपचार जिसमें पहले हफ्ते खाने पीने की आदतों को सुधारने पर ध्यान दिया जाता है, फिर सोने- उठने के समय से लेकर खेलने तक पर ध्यान दिया जाता है। टीवी पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है और यहाँ तक की माता पिता की जिम्मेदारियाँ तक बदल दी जाती है, अगर बच्चे पिता के ज्यादा निकट है और उनके अनुशाषन में है तो अब घर की पूरी जिम्मेदारी माँ को दी जाती है। जिससे कई बार बच्चे तो बच्चे , माता- पिता भी नियम तोड़ देते हैं। एक बात का खास ध्यान दिया जाता है कि घर के सारे सदस्य एक साथ बैठ खाना खायें। जिससे आपस में अपनत्व बढ़े।
दो -तीन हफ्तों के बाद उन्हें फिर से स्क्रीन पर दिखाया जाता है कि बच्चे अब कैसे दिखेंगे और उस के हिसाब से आगे का कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है। आखिरकार डॉ लिजा का उपचार पूरा होता है और अब एक बार फिर से बच्चों को स्क्रीन पर बताया जाता है कि अब बच्चे चालीस की उम्र के होने पर कैसे दिखेंगे। परिणाम बहुत ही आश्चर्य जनक होते हैं। अगर समय मिले तो एक बार इस कार्यक्रम को जरूर देखें।
मेरा तीसरा पसंदीदा कार्यक्रम स्टार प्लस पर आ रहा धारावाहिक “एक चाबी है पड़ौस में ” है। एक छोटे कस्बे के मोहल्ले कर्नल गंज में कुछ परिवारों की कहानी है। इस मोहल्ले में कुछ मध्यम वर्गीय परिवार रहते हैं। जिनमें एक मुस्लिम है,गुजराती उर्मी है ,बंगाली है ,पंजाबी भी है। सारे लोग मिल जुल कर रहते हैं, नाकारा बच्चे भी हैं जो दिन भर कैरम खेलते रहते हैं पर उनमें अटूट दोस्ती है। कभी कभार आपस में ढ़िशूम – ढ़िशूम भी कर लेते हैं। सबसे आकर्षक है वरूण बडोला। कुल मिला कर एक सामान्य कहानी जिसमें कहीं कोई षड़्यन्त्र नहीं करते, करोड़ों की बातें नहीं होती। उपर जो लिंक दिया है उसमें उर्मी (पात्र का नाम है, अभिनेत्री का नाम याद नहीं) और वरूण भी दिख रहे हैं। जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं पर इजहार नहीं कर पाते।
जब दूरदर्शन नया नया आया था तब इस तरह के कई धारावाहिक आते थे, अब वो बात कई बरसों के बाद एक चाबी…. ने कर दिखाई है। आम आदमी की कहानी होने की वजह से यह धारावाहिक देखते समय ऐसा महसूस होता है कि मानों हम भी इस कहानी का एक हिस्सा हों। इस कार्यक्रम को आप नहीं देखा तो आपने बहुत कुछ “मिस” कर दिया है।इस शनिवार को मत भूलें। बहुत ही सुन्दर धारावाहिक है यह।
(जारी…)
अनूप शुक्ला said
बढि़या है देखते रहो अकेले-अकेल टीवी!
manya said
वैसे मैं टीवी नहीं देखती, पर आपने अच्छी जान्कारी दी है.. discovery के programme देखती हुं कभी कभी.. आपने जो बताया है देखूंगी ..
Divyabh said
हट के जानकारी दी…आपको पता है…इसका प्रभाव व्यापक पड़ने वाला है…इस पोर्टल के अनेकों सदस्य गण इस तारीफ के बाद देखना शुरु करेंगे…अरे सर चैनल वालो से इस प्रचार का कमीशन मांगीये…:) बहुत सही…!!
ghughutibasuti said
धन्यवाद नाहर जी, आपके बताए कार्यक्रम देखने का प्रयास करूँगी । विश्वास नहीं होता कि आम मोहल्ले में रहने वालों पर भी सीरियल बन रहे हैं ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
Shrish said
इधर तो दो साल से टीवी बन्द है। इंटरनेट से ही सारा वक्त गुजर जाता है। फिर टीवी से मुझे सबसे ज्यादा नफरत आई कभी न खत्म होने वाले धारावाहिकों से।
pankaj bengani said
मुझे भी डिस्कवरी का यह शो पसन्द है, तथा प्लेनेट अर्थ भी. 🙂
संजय बेंगाणी said
डिस्कवरी के लगभग सारे कार्यक्रम पसन्द है. पर देखने का मौका कभी कभार ही मिलता है 😦
हिन्दी धारावाहिको में ‘बा, बहू और बैबी’ ठीक लगा. नियमीत नहीं देखता.
swarna jyothi said
सागर भाई आप ने धारावाहिकों की चर्चा की है वैसे तो मैं टी.वी. कम देखती हूँ पर आप ने डिस्कवरी पर जिस धारावाहिक की चर्चा की है वह मुझे भी बहुत पस्न्द है परन्तु मुझे इस धारावाहिक के ठी समय का पता न होने के कारण हमेशा चूक जाती हूँ और आप ने जिस अंक की चर्चा की है उसे मैंने देखा है वाकई उन हालातों में जिन्दगी क्या है भूख क्या है और जीना क्या है इन सारे सवालों के जवाब हमें मिलते हैं उन जांबांज जिन्दगी के असली नायकों को सलाम
Dipika said
Discovery par bahut luch jaane ke liye hota hai,dekte rahiye…dicoverychannel
SHUAIB said
भाई अपने को सिर्फ कार्टून चैनल्स और बाक़ी हंसने हंसाने के प्रोग्राम पसंद हैं चाहे कुछ भी मानो। मगर टीवी देखने मेरे पास वक़्त ही नहीं है।
Mohinder Kumar said
ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने, बधाई स्वीकारें.
Mohinder Kumar said
ज्ञानवर्धक जानकारी दी है आपने, बधाई स्वीकारें.
प्रियंकर said
आपकी पसंद से यह दूसरा मेल देखने को मिला. पहला यह था कि पन्ना लाल पटेल आपके भी प्रिय लेखक हैं और मेरे भी .
दूसरी समानता है यह सीरियल ‘ इक चाबी है पडोस में’ . काश कर्नलगंज जैसे मोहल्ले बहुतायत में होते. मुझे ‘बा,बहू और बेबी’ भी पसंद है .
एकता कपूर को इनसे सीख लेनी चाहिये.
Tarun said
हमतो वो सब देखते ही नही हैं जिनकी ३-४ से ज्यादा किश्त हों और ना कभी देखने की ख्वाहिस ही है, फिलहाल तो हम लॉगिन हो रहे हैं भारत-श्रीलंका के बीच के अंतिम मैच को देखने के लिये
अनजान said
बडा अच्छा लिखा है आपने, कुछ तो है आखिर T.V. पर जो आपको पसन्द है ।
DR PRABHAT TANDON said
“बा, बहू और बैबी” को छोडकर स्टार प्लस के मुझे बाकी सब धारावाहिक बेकार और उबाऊ लगे। हाँ, इस धारावाहिक मे अवशय कुछ है जो बरसों पहले आपको दूरदर्शन के धारावाहिकों की याद दिला सकता है।
मजेदार वीडियो « ॥दस्तक॥ said
[…] कुछ समय पहले मैने एक पोस्ट लिखी थी मेरे मनपसन्द धारावाहिक, उसमें मैने हिन्दी के एक मशहूर […]
i am said
tum ek bewakuf insaan ho