हास्य कवियों को लगा अनोखा रोग
Posted by सागर नाहर पर 1, जून 2007
हास्य कवि सम्मेलन या लाफ्टर शो:
शानिवार १२ मई की रात रात डैली हिन्दी मिलाप और अन्य तीन संस्थाओं ने अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया था। मुख्य कवि थे अरुण जैमिन, आसकरण अटल, कविताकिरण, कीर्ती काले , सुरेन्द्र दुबे, ओम व्यास , डॉ अनिल मिश्र आशीष अनल, जगदीश सोलंकी और लेफ्टिनेंट कर्नल वी पी सिंह और संचालक थे सुभाष काबरा। समय था रात ८ बजे। समय निभाने की भारतीय परंपरा को ध्यान में रखते हुए आठ की बजाय हम दस बजे सम्मेलन स्थल यानि नुमाईश मैदान पहुँच गये। तो देखा कि अभी तक कवि सम्मेलन चालू हुआ ही नहीं था। स्थानीय सांसद विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों के सम्मान, प्रशस्ति पत्र और उबाऊ भाषणों के बाद ( एक महाशय तो दो बार भाषण दे गये) जैसे तैसे रात पौने ग्यारह बजे कवि सम्मेलन चालू हुआ।
फालना राजस्थान की श्रीमती कविता किरण ने माँ सरस्वती की वन्दना कमलासनी शारदे .. प्रार्थना से की और बाद में सबसे पहले लाफ्टर चैलेंज के बाल कलाकार जय छणियारा को मौका दिया गया। जय अपने पाँवों पर चल नहीं सकते और अपना इलाज करवाने हैदराबाद आये हुए थे और आयोजकों ने लगे हाथ उन्हें भी कवि सम्मेलन में बुलवा लिया। अपनी उम्र के हिसाब से जय की प्रस्तुति काफी अच्छी थी और लम्बी भी; आखिरकार संचालक सुभाष काबरा को उन्हें जतलाना पड़ा कि बेटा अभी कवियों की लम्बी टीम अपनी कवितायें पढ़ने के लिये बाकी है।
जय के बाद नम्बर आया प्रतापगढ़ के डॉ अनिल मिश्र का जो खास प्रभावित नहीं कर सके। दूसरे नंबर पर थी कविता किरण जिन्होनें शुरुआत अच्छी की पर बाद में हास्य कविताऒं के नाम पर फिल्मी गीतों की पैरोडी गाने लगी और अपनी सुन्दर शुरुआत को बेकार कर दिया, साथ साथ में सुभाष काबरा की टिप्प्णीय़ाँ बाधक लग रही थी। जिस तरह अब मंचों पर फ़िल्मी पैरोडिया गाई जाने लगी है लगता है, इन्हें साहित्य की एक विधा के रूप में मान्यता मिल चुकी है।
उनके बाद तो कवि आते गये और हास्य व्यंग्य के नाम पर चुटकुले सुनाकर जाते रहे और कवि भी वे जिनके नाम पढ़ कर हम बड़ी उम्मीदें लेकर गये थे, मसलन ओम व्यास( उज्जैन ) कीर्ती काले( दिल्ली), अरुण जैमिन आदि। अरुण जैमिन ने हरियाणवी में कुछ सुनाकर हँसाया पर जो कुछ सुनाया उसे हास्य या व्यंग्य की कविता नहीं माना जा सकता। यानि सारे कवि अब कवि कम और लाफ्टर चैलेंज के प्रतियोगी ज्यादा लग रहे थे। हाँ लखीमपुर के आशीष अनल और की वीररस पर आधारित कवितायें ठीक थी और गुहावाटी के लेफ्टिनेंट कर्नल वीपी सिंह ने कुछ आस जगाई।
ओम व्यास ने अपनी भूमिका में कहा था कि वे लोग जो दूसरों की गाड़ियों पर आये हैं वह चाहे तो भी बीच में से उठ कर जा नहीं सकते पर मेरे साथ उल्टा हुआ आसकरण अटल, ब्यावर के सुरेन्द्र दुबे , कोटा के जगदीश सोलंकी और संचालक सुभाष काबरा की कवितायें सुनने की इच्छा थी और उम्मीद थी कि कम से कम वे तो निराश नहीं करेंगे पर जिन की गाड़ी पर मैं आया था उनकी हिम्मत ने जवाब दे दिया क्यों कि उन्हें नींद आने लगी थी और रात के ढ़ाई भी बज चुके थे सो मजबूरन हमें उन तीन कवियों को बिना सुने ही घर लौट जाना पड़ा।
टिप्पणीयाँ …
written by Pankaj Bengani, मई 15, 2007
स्वागत है भाईसा.
हाँ यह तो सच है.. एक ही एक पकाऊ चीजे क्या सुनें.. कोई वेरायटी तो लाओ
…
written by arun, मई 15, 2007
कहे भाई नाहर जी काहे पंगे ले रहे हो अपने समीर भाई सा को सुन लेते हम भी आ जाते यही कर लिया करो ना हास्य मुकाबला
…
written by शैलेश भारतवासी, मई 15, 2007
सागर जी,
आपने बढ़िया रिपोर्ट पेश की है। वैसे आजकल के हास्य कवियों का यही हाल है। एक हैं सुनील जोगी, मैं उन्हें बहुत बड़ा हास्य कवि मान बैठा था, मगर मैंने जब कई जगह देखा तो पाया कि वो हर जगह अपनी वही रचनाएँ सुनाते हैं। बहुत बुरी दशा है। अब लगता है कि हम अंतरजालीय कवियों को ही कुछ करना पड़ेगा।
…
written by दीपक, मई 15, 2007
अब यही देखने जाना था तो मुझे बुल लिया होता। कम से कम इतना बोर तो नही होते….
…
written by प्रमेन्द्र प्रताप सिंह, मई 15, 2007
सही लिखा है।
हमें भूल गये क्या ?
हा हा
written by समीर लाल, मई 15, 2007
सागर भाई
अब कवि सम्मेलन ने आपको जितना भी पकाया हो, हम तो उनके आभारी हैं कि उनकी रिपोर्टिंग करने के बहाने ही सही, आप वापस लिख रहे हैं और हम आपको पढ़ रहे हैं. बेहतरीन रिपोर्टिंग रही-एक दम सच सच!!
अब आप लगातार लिखते रहें. शुभकामना. अरुण की बात वैसे गौर तलब है.
सागर भाई
written by sunita(shanoo), मई 15, 2007
काश की हमको बुलाया होता,..खैर क्या हो सकता है,..
वाह ये लाइन तो ख़ूब है
written by नीरज दीवान, मई 15, 2007
ये उदारीकरण का असर है सागर भैये. अब ये कवि गुदगुदाते नज़र नहीं आते. आपका सेंस ऑफ़् ह्यूमर या तो ऊंचा हो गया है या फिर इन कवियों ने अपने को मेक ओवर नहीं किया है. ख़ुशफ़हमी पाल ही लें.. कुछ दिन बाद आप चिट्ठाजगत के कवियों से भी ऊब जाएंगे. बिना पढ़े टीपियाएंगे.. वाह सुंदर रचना.. संवेदनशील.. अल्टीमेट.. (कापी मारो पेस्ट मारो) वाह यह लाइन तो ख़ूब है.
जो कहना चाहिये था- वह मैं कह देता हूँ
written by राकेश खंडेलवाल, मई 15, 2007
मान्यवर आप कविता न अपनी पढ़ें
वरना श्रोता हर इक बोर हो जायेगा
आप ज़िद पर अगर अपनी अड़ ही गये
दर्द सर का, सुनें , और बढ़ जायेगा
आपने जिसको कह कर सुनाया गज़ल
वो हमें आपकी लंतरानी लगी
और जिसको कहा आपने नज़्म है
वो किसी सरफ़िरे की कहानी लगे
छोड़िये अपना खिलवाड़, ओ मेहरबां
शब्द भी शर्म से वरना मर जायेगा
टांग तोड़ा किये आप चौपाई की
और दोहों को अतुकान्त करते रहे
शब्दकोशों की लेकर प्रविष्टि जटिल
आप अपने बयानों में भरते रहे
मान लें कविता बस की नहीं आपके
आपके बाप का क्या चला जायेगा
चार तुक जो मिला लीं कभी आपने
आप समझे कि कविता पकड़ आ गई
मान्यवर एक आवारा बदली है वो
आप समझे घटा सावनी छा गई
और ज्यादा सुनेगा अगर आपकी
देखिये माईक भी मौन हो जायेगा
राकेश खंडेलवाल
अतीत का हिस्सा
written by मनीष, मई 15, 2007
चुटकुला, और पैरोडी सुना कर ही अगर जनता हँस दे तो काम भी कम और वाहवाही अलग से । अगर यही हाल रहा तो पुरानी हास्य कविता अतीत का हिस्सा हो जाएगी।
…
written by नीरज शर्मा, मई 17, 2007
बहुत सही कहा है सागरजी इससे बढिया चुटकुले घर के नन्हे मुन्हें सुना देते हैं। इन्हें कवि नही चुटकुलाकार की संज्ञा देनी चाहिये।
समीर लाल said
वापस कैसे छप गई?? यह तो पुरानी वेदना है. 🙂
अनूप शुक्ल said
सही लिखा आपने। कवि सम्मेलन में चुटकुलेबाजी बढ़ गयी है।