सेना बनायेगी "गड्ढे में से बच्चा निकालो दस्ता"!
Posted by सागर नाहर on 29, मार्च 2008
पिछले तीन चार सालों में अजय, प्रिंस, सूरज और वंदना जैसे कई बच्चे सूखे बोरवेल में गिर गये, जाहिर है जनता से तो इतनी गहराई से वे बच्चे निकलने से रहे, सेना को यह काम करना पड़ा। प्रिंस और वंदना किस्मत वाले रहे जो सुरक्षित निकल गये, कुछ बच्चों के भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया और वे नहीं बच पाये।
इन दिनों जिस तरह बच्चे बोरवेल में गिर रहे हैं और उन्हें बचाने के काम के लिये हर बार सेना को अपने सारे काम छोड़, दौड़ना पड़ता है उसे देखते हुए लगता है वो दिन दूर नहीं जिस दिन सेना को इस परिस्थिती से निबटने के लिये एक अलग से “गड्ढे में से बच्चा निकालो दस्ता” बनाना पड़े। अब चूंकि विदेशों में तो इस तरह के हादसे तो होते होंगे नहीं, भारत में जब भी ऐसा हादसा होगा प्रक्षिषण प्रशिक्षण के लिये सैनिकों को भेजा जायेगा और पूर्व में बच्चों को निकालने के कार्य में शामिल सैनिकों से मार्गदर्शन लिया जायेगा।
क्षमा चाहता हूँ इस तरह की मजाक करने के लिये परन्तु बड़ा क्षोभ होता है जब इस तरह की घटना होती है। इतनी दुर्घटनायें होने के बाद भी लोगों को यह बात समझ में नहीं आती कि अपने बंद हो चुके बोरवेल को मिट्टी से भरवा दें या उसका मुंह इस तरह बंद कर दे कि आगे से इस तरह की दुर्घटना ना हो। परन्तु नहीं! बार बार दुर्घटनायें होने के बाद भी हमने ना सुधरने की कसम जो खा रखी है।
बेचारे मासूम बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ती है और सेना को नाहक इधर उधर दौड़ना पड़ता है। सरकार को भी शायद अब नया कानून बनाना चाहिये जिसमें इस तरह की घटनाओं के दोषी बोरवल मालिकों को कड़ी सजा दी जाये।
Gyan Dutt Pandey said
सही बात – सेन गढ्ढ़े में जायेगी तो सरहद पर जीतेगी कैसे!
arun said
हम तो समझे कि अब बच्चे गड्ढो से ही इस जहा मे आयेगे.यहा आप किसी नई खोज के बारे मे बता रहे है.यहा तो आज मजाक उडाये है..:)
समीर लाल said
सही कह रहे हैं-आवश्यक्ता है किसी सख्त कानून की.
समीर लाल said
सही कह रहे हैं-आवश्यक्ता है किसी सख्त कानून की.
pankaj bengani said
मजाक मजाक मे सही बात कह गए हो दद्दा
mamta said
आपका सुझाव मानने योग्य है। क्यूंकि ना तो बोरवेल की खुदाई बंद होगी और ना ही बच्चों का ऐसे गड्ढों मे गिरना।
संजय बेंगाणी said
बच्चों को निकालने का खर्च बोर मालिक से लिया जाय.
Dr. Ajit kumar said
आज के अखबार में भी एक खबर छपी है कि .. ” वन्दना इतनी भाग्यशाली नहीं निकली गुडिया”. बात वही बोरवेल में गिरने की.
शायद सरकार को आपकी बात मान लेनी चाहिये.
सुजाता said
अरे सागर जी ,
परसों ही सोच रही थी कि अब तो हमें एक लम्बा लगभग 50 फीट लम्बा फोर्सेप बना लेना चाहिये क्योंकि गड्ढे तो खुदेंगे ही और खुले भी पड़े रहेंगे और बच्चे भी बिना निगरानी वहाँ खेलेंगे ही ….और गिरेंगे भी ….।
दुखद और हास्यास्पद है ऐसे घटनाओं का बार बार होना !
ila said
जीमेल से अदृष्य होने वाली आपकी पोस्ट ही गायब हो गई, ई कइसे हो गया? खैर आजकल ऐसा लगता है जैसे बच्चों क गड्डे में गिरते रहने का चलन सा हो गया है, हम जब बच्चे थे तो शायद इतने गड्डे नहीं खुदते थे, ना ही इतने बच्चे होते थे.या फिर अब मीडिया बहुत तत्परता से ऐसी खबरों का कवरेज करता है.कुछ भी हो, इस दिशा में कठोर कदम उठाये जाने चाहियें.
राज भाटिया said
ओर ऎसी खुदाई करते समय इन के चारो ओर सुरक्षा के उपाय भी होने चहिये,फ़िर इस काम का निश्चित समय होना चहिये, उस दोरान काम पुरा हो, ओर कोई भी छेद नही खुला होना चहिये,ओर अगर कम्पनी की या उस बोरवेल वाले की गलती से कोई दुर्घटना होती हे तो उन से हरजाना ओर जुर्मना लेना चहिये,जुर्मना इतना की ओरो को भी कान हो.सख्ती जरुरी हे.ओर बच्चो को भी बताना चहिये ऎसी जगह मत खेले,सागर जी धन्यवाद
sandeepkmishra said
अब लोग गड्ढे खोदने की आदत से बाज आएं, तो काम बने…सेना का क्या है…गड्ढे से निकलवा लो…कम से कम भ्रष्ट नेताओं की रक्षा से करने से ज्याद सुख तो इन्हें इस काम में जरूर मिल जाता है…और रही मीडिया की बात तो… इनके लिए तो इससे शुभ क्या हो सकता है..कि पूरे दिन का मसाला…वो भी रेडिमेड…बस स्क्रीन पर दीवार घड़ी लगाओ…और बस खेलते जाओ…एंकर तो भईया अभ्यासरत है ही…
sandeepkmishra said
अब लोग गड्ढे खोदने की आदत से बाज आएं, तो काम बने…सेना का क्या है…गड्ढे से निकलवा लो…कम से कम भ्रष्ट नेताओं की रक्षा से करने से ज्याद सुख तो इन्हें इस काम में जरूर मिल जाता है…और रही मीडिया की बात तो… इनके लिए तो इससे शुभ क्या हो सकता है..कि पूरे दिन का मसाला…वो भी रेडिमेड…बस स्क्रीन पर दीवार घड़ी लगाओ…और बस खेलते जाओ…एंकर तो भईया अभ्यासरत है ही… उनके लिए तो बस…जय हो, जय हो …गड्ढ़े की भी जय हो…
lovelykumari said
आपने दिल की बात कह दी मैं कई दिनों से लिखने की सोंच रही थी पर आपके जैसी कुशलता से नही व्यक्त कर पाती, धन्यवाद.
A S MURTY said
इस तरह से लगातार छोटे बच्चों का इन्त्ने कम अन्तरकाल में बोरेवेलों में गिरना अपने आप में एक बड़ी आपदा है। रही हमारी सरकार की बात, तो वोह कुछ करने में पहले से ही असमर्थ है और देश को सेना के भरोसे ही रहना पड़ता है। सेना ने हरबार सच्ची लगन से, कड़े मेहनत से और बड़े ही संयोग से इन कठिन परिस्थितियों में झूझकर इन प्राणियों की रक्षा की है। ऐसे हालात में क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नही बनती की न सिर्फ़ इन बोरेवेलों के मालिकों को कड़ी से कड़ी सज़ा दें, बल्कि नागरिकों के सुरक्षा अपने कन्धों पर ख़ुद रखे। देश की सेना का काम सरहदों पर है और वेह सदा से ही इस कार्य में सक्षम रहे हैं। सरकार अपने हर जिम्मेदारी में विफल रही है। आपने यह विषय चुनकर अच्छा किया ताकि हम जैसे लोग भी जागरूक हो सकें। और भयानक आपातकालीन परिस्थितियों में शायद सेना की मदद आवश्यक सिद्ध होगी। पर सरकारका भी उत्तरदायित्व बनता है की नागरिकों के सुरक्षा पर उसे ज़्यादा ध्यान देना चाहिए।
अनूप शुक्ल said
सत्यवचन!
yunus said
साथ में ‘टी वी कवरेज रोको’ दस्ता भी बनवाईये ।
rakhshanda said
bilkul sach…..
svtuition said
Dear
I read your article which is very good .I think that Govt. Should make stick rules for safguading the life of our children
Neeraj Badhwar said
और जिस तरह बच्चों का गड्ढों में गिरना उनका घरवालों के लिए फायदे का सौदा हो रहा है, सुना है इन गड्ढों की एडवांस बुकिंग होने लगी है। पहले मेरा बच्चा, नहीं पहले मेरा….वो भी क्या करें प्रशासन को गड्ढ़े में गिरे बच्चे की जान जाती दिखती है, भूख से मरते बच्चे की जान नहीं दिखती । शायद उसमें गड्ढ़े जैसी नाटकीयता नहीं है, भूख से मरना visually rich भी नहीं है इसलिए टीवी को भी ज़रूरत नहीं।
सागर भाई आपकी तमाम टिप्पणियों के लिए धन्यावाद। फीड बर्नर कैसे लगाना है मुझे नहीं पता। अगर कोई लिंक है तो मेरे email id nirajbadhwar@gmail.com पर भेज दें।
Rohit Jain said
क्या कहें इस को पढ़ के…. सच कभी कभी हमें किंकर्तव्यविमूढ़ कर देता है…..