आपने बंदर पपड़ी खाई है कभी?
Posted by सागर नाहर पर 17, मई 2008
कनेर के पीले लम्बे फूलों का मीठा रस चूसने का आनन्द आपने लिया कि नहीं?
बचपन में हमारे खाने पीने की चीजों की सुचि कितनी बड़ी हुआ करती थी। मेहन्दी के बीज को सुपारी की तरह खाने का मजा ही अलग था( घर में सुपारी खाने की मनाही जो थी)भले ही पहले थोड़े कड़वे लगते हों। पाँच पैसे की हवाबाण हरड़े, इतने की पैसों की गोल एक रुपये के सिक्के की साइज की ( काली मिर्ची के स्वाद वाली और संतरे के फाँक की शक्ल वाली भी )गोलियाँ। पेड़ पर पत्थर मार कर तोड़े गये आँवले और अधपकी( डालपक) इमलियाँ, तोते के आधे खाये अमरूद !! तले हुए भूंगले, भुने हुए बरसाती चने ; वे नहीं जिनका छिलका निकल जाता है- हमारे यहाँ एक चांदू चाचा है जों बरसों से ऐसे चने बनाते हैं जिनका छिलका नहीं निकलता और खाने में नमकीन और इतने स्वादिष्ट की क्या कहने। और भी ना जाने क्या क्या चीजें।
आहा!! इन चीजों को यादकर ही मुँह में पानी आ गया।
आजकल बच्चों को ये चीजें देखने- खाने को नहीं मिलती। ज्यादा से ज्यादा अंकल चिप्स, कुरकुरे और लेज़.. पीने में कोड ड्रिंक्स बस।
पिछले साल एक दिन श्रीमतीजी ने सुझाया सुबह उठकर घूमने चलते हैं, अनमने मन से मैने अगले दिन सुबह गया भी, लेकिन दूसरे दिन से उल्टा था! श्रीमतीजी मना करती थी कि रहने दो आज नहीं जाते हैं पर मैं जिद करता था, पता है क्यों? क्यों कि रास्ते में सिकन्दराबाद क्लब पड़ता है और उसके बाहर बहुत सी बंदर पापड़ी बिखरी पड़ी रहती थी, सो खाने में मजा आ जाता था, और सुबह सुबह कोई देख लेगा तो क्या कहेगा? यह डर भी नहीं था।
बंदर पापड़ी??
पिछले दिनों नितिन बागला जी ने अपनी पोस्ट में कई सारी ऐसी ही चीजों का जिक्र किया था । उनमें से एक थी बन्दर रोटी या बन्दर पापड़ी। यह मेरी भी सबसे पसन्दीदा चीजों में से एक थी है नहीं वह तो आज भी है। नितिनजी ने नैट पर बहुत खोजा पर उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली। आज मैं लाइट बिल जमा करवाने गया तब वहाँ बहुत सी बंदर पापड़ियाँ बिखरी पड़ी थी, लोग भी काफी खड़े थे पर सुकुचाते हुए-पाँव खुजाने के बहाने तीन पपड़ियाँ उठा ही ली 🙂
आप भी देखिये बंदर पपड़ी का फोटो, शायद आपका बचपन इस पेड़ या फल से जुड़ा हो। आशा है इस के बारे में डॉ पंकज अवधिया जरूर कुछ बतायेंगे। और हाँ आप भी अपनी सुचि के बारे मॆं जरूर बतायें।
स्कैन करने के बाद जब इन पपड़ियों को छीलकर खाने की कोशिश की, हाय रे किस्मत चोरी का माल व्यर्थ ही गया, एक पपड़ी उड़ गई , दूसरी यूं ही चूरा हो गई और तीसरी में मिंगी ही नहीं निकली, लगता है कल सुबह श्रीमतीजी को साढ़े पाँच बजे जगाना ही पड़ेगा।
ghughutibasuti said
बचपन की बढ़िया याद दिलाई। मेंहदी के बीज तो हमने भी खाए हैं और आज भी हर बार जब उसका पेड़ दिखता है तो खाने का मन होता है। अपने घर और बगीचे में तो आज भी बचपन की सी हरकतें कर लेती हूँ। बाहर भी बहुत शैतानी तो करती व करवाती हूँ परन्तु फिर भी थोड़ा सा तो ख्याल रखना पड़ता है।
घुघूती बासूती
mahendra mishra said
वाह साहब आपने बचपन की यादें तरोताजा कर दी है .बन्दर पपडी के बारे मे आज पहली बार पढ़ा है अभी मैंने इसे देखा नही है पर अब जरुर कोशिश करूँगा , धन्यवाद
bhuvnesh said
याद नहीं आ रहा पर घर के आसपास और बहुत सारी जगहों पर ऐसे बीज देखे हैं.
पर अब नहीं नजर आते शायद पेड़ कटने की वजह से.
ranjanabhatia said
मैंने तो यह पहली बार पढ़ा या शायद देखा हो कभी ..पर मेहंदी के बीज जरुर खाए हैं :)इस के साथ कच्चे नींबू और कच्चे अमरुद तोड़ के वह भी चोरी से खाना बचपन में मेरी सबसे प्यारी याद है ..इसको पढ़ के याद आ गया कसम से हर चीज का स्वाद 🙂
Nitin Bagla said
शुक्रिया सरकार, बंदर की रोटी का फोटो साझा करने के लिये।
🙂
Neeraj Rohilla said
वाह सागर जी,
बचपन की याद दिला दी आपने, हमारे घर की छत पर ये पापड़ी जैसी चीज़ उड़ के आ जाती थी कहीं से, और मैं और मेरी बहन बीनकर इसे खाते रहते थे |
हमने बचपन में कभी अंकल चिप्स, चाकलेट और ववाली चीजे नहीं खाई | हमारे पसंदीदा चीजे होती थी,
सैनी चाट भण्डार के दही बड़े, आलू की टिक्की और चूरन वाले से पच्चीस पैसे का काला वाला चूरन जिससे कभी कभी जीभ जल भी जाती थी | इमली के तो क्या कहने, दो तरीके की इमली आती थी, एक सादा वाली और दूसरी स्पेशल वाली जो अन्दर से लाल होती थी |
meenakshi said
ऐसी यादें बचपन में ले जाती हैं लेकिन मौका मिले तो बचपन फिर से दुहरा देते हैं..बचपन में नानी के घर जाते तो इमली और काँटों वाली लाल बेरी खाते….कॉलेज के दिनों में केन्द्रीय सचिवालय के रास्ते में जामुन और शहतूत खाते…अब खजूर और अंजीर खाने का मौका मिले तो चूकते नहीं..
समीर लाल said
बड़ी सारी यादों ने आ घेरा. मगर यह बंदर पापड़ी तो शायद हमने कभी नहीं खाई. अच्छा बताया. 🙂
Dr Prabhat Tandon said
इसको देखा भी है और स्कूल के दिनो मे खाया भी है लेकिन यहाँ नाम कुछ और ही लिया जाता है ; याद करने पर भी याद नही आ रहा है 🙂
लेकिन क्या आपने कभी मूंगफ़ली के दानों के ऊपर वाला छिलका खाया है , स्कूल के दिनों मे मेरे क्लास मे पीछे के सीट पर बैठने वाला लडका अपनी जेब मे भर के लाता था और दिन भर मुँह में डाले रहता था ।
Abhishek said
शायद हमने नहीं खाई 😦
Annapurna said
बचपन में गुलमोहर की पंखुड़ियाँ बहुत खाई। आज भी मौका मिलता है तो मुँह में डाल लेती हूँ… खट्टी-मीठी… ओह ! बहुत मज़ा आता है। सुपारी की जगह हमने इमली के बीजों को भून कर खाया। पर मेंहदी के बीज और बन्दर पापड़ी के बारे में आज पहली बार सुना।
Ila said
बचपन भी कितना स्वादिष्ट होता था.बंदर पापडी, गुलमोहर के फ़ूलों की पंखुडियां, इमली के कटारे(कोटा,राजस्थान में कच्ची इमली को यही कहते हैं, नितिन से पूछ लीजिये),गेन्दे के फ़ूल के अन्दर से निकली बाटी सब कुछ याद आ गया.
diggi57 said
pakanj avadhiya ek jaanaa pachaanaa naam hai, aap ho kahaan bhaiyaa, khoob paapadee khilaai, kaafee dino ke baad lagtaa hai ki kuchh padhaa.
dhanyawaad,
digvijay
vijay wadnere said
अरे!! इसे बंदर पापड़ी कहते हैं??…
हम तो इसे “चारोली” बोल कर खाया करते थे..भोपाल के हमारे घर के पास ही इसका पेड़ था. ढेरों पड़ी रहती थी ज़मीन पर.
खुब जमा करते थे…और खुब खाते थे…
पास ही में जंगली बेरी भी थी…हरे हरे…अधपके-कच्चे-पक्के बेर तोड लाते थे…
फ़िर केरी (कच्चे आम) – राजभवन से तोड़ लाते थे…
और …विलायती इमली भी…जाने कहाँ कहाँ – किस किस के झाड़ हैं…हम बच्चों को सब पता होता था…
और बड़े भले ही कितना भी मना करते रहें – कि पेट दुखेगा, मत खाओ – मगर हम तो हम ठहरे..!!
वाह! मज़ा आ गया…!! पुराने दिन याद कर के… 🙂
vijay wadnere said
अरे हाँ…!! उपर की टिप्पणियाँ पढ कर और भी याद आ गया…
१० पैसे की २० गटागट,
हवाबाण हरडे,
संतरे वाली गोलियाँ,
गुलमोहर के फ़ुल..वो भी सिर्फ़ लाल सफ़ेद वाली पत्ती जो कि खट्टी मीठी लगती है..
और गैंदे के फ़ुल से निकला “खोपरा”..
और…और…और…
बस अब और नहीं याद आ रहा… 🙂
दिनेशराय द्विवेदी said
बन्दर पापड़ी तो नहीं खाई। पर जंगल जलेबियाँ जरुर खाई हैं। हमारे स्कूल में बहुत पेड़ थे इस के। अब भी इस के पेड़ मिल जाते हैं।
Dr. K. P. Srivastava said
Aapne bachapan ki yad dila di. Varanasi men Ise hum log ‘chilbil’ kaha karte the. Iske under ki giri ek dry fruit’chiraunji’ ke test se bahut milti thi.Isme koi shuk nahin ki ye khane men achchi lagti hai.
महावीर said
बचपन की तो याद दिला ही दी पर हमारे साथ तो अन्याय हो गया।
नंबर १ तो यह है कि हम ऐसे मुल्क में पड़े हैं जहां ऐसी चीजें आंखें मूंद कर केवलखाली पीली तसव्वर में ही मजा ले सकते हैं। दूसरे कुछ ऐसी लज़ीज़ चीजें मिल भीजाती हैं तो डाक्टर की सूंई तैयार है। रहा धरा सारा मजा परहेज़ ने मटिया मेट करदिया। लेकिन यह अवश्य कहना पड़ता है कि आप के इस लेख को बार बार पढ़ करखाने का ही सा मज़ा आ रहा है। धन्य हो!
अतुल शर्मा said
बंदर की रोट कहते थे और बचपन में बहुत खाई है 🙂
पंकज अवधिया Pankaj Oudhia said
सागर जी,
बन्दर पापडी का वैज्ञानिक नाम है Holoptelea integrifolia
इसे Kanju भी कहा जाता है। देरी के लिये क्षमा करियेगा।
garima said
मैने कभी बंदर पापडी नही खायी, नाम भी नही सुना 😦 आप ही भेज देना भईया
मेरे खाने की सुची मे रहते थे, भटकोआ, बेर, शहतुत, अमरूद, अनार, आम, अंगुर, और केले हाँ कुछ फूल भी थे जिनके नाम नही याद आ रहे हैं, कुछ जंगली पत्तियाँ, जिसमे सबसे ज्यादा पसन्द थी, पत्थर चट्टा, और हाँ वो मटर के पौधे और चने के पौधे की नन्ही कलियाँ, और उसके पत्ते, अगस्त के फुल, अमडा के तो बेर पत्ते दंठल सब कुछ, और भी बहुत कुछ जिनके स्वाद तो याद हैं, पर रंग रूप भूल गयी हूँ, ये अलग बात थी कि इन्ने सब चीजो को ढूँढने के लिये मुझे कही दूर नही जाना पडता था, अपने ही खेतो मे, या बागीचे और बगल के आँगन मे सबकुछ मौजुद था, बस फ़र्क यह था कि मै जल्दी जल्दी से बीमार होती थी, तो या सारी चीजे अपने ही आंगन मे लदे सवरे होते थे, पूरे गाँव के बच्चे खा के निहाल होते थे, और मै महीने मे कभी कभार एक बार खा के ही मन मसोस के रहना पडता था… 😦
हाँ मुझे इसके बदले कड्वी दवाईयो की घुट जरूर मिलती और सूईयां भी.. पर बचपन था ना… महीने मे एक बार तो इधर-उधर से नजर बचाकर.. ही ही
SHASHI SINGH said
AHAMADAABAD AIRPORT COLONY KE A- 18 MAKAN ME EK JAAT PARIVAAR RAHATA THAA . INKEE EK BADEE CHANCHAL GUDIYAA THEE JISE MOTHER TERESAA KAHATE THE . BINA PALE ISAKE PAAS 20 – 25 KUTTON KEE FOZ KHADEE RAHATEE THEE . TAB JAANA THA JANGAL JALEBEE , MEHNDEE KEE BEEJ , BANDAR PAPADEE , MAUSAM VIBHAAG KEE MAT OFFICE ME BER , KHARGOSH , ADHPAKE BAADAM ( BAADAM KEE GIRI TO SAB KHAATE HAIN HAM OOPAR KAA MUKHYA PHAL KHAATE TE )VAHAAN JO AANAND PAAYAA AAJ TAK NAHEEN PAAYAA . DO BETE HAIN MERE . BADA JAB 7 SAAL KAA THAA EK DIN KAHEEN SE NIBAUREE LE AAYAA OR ESE KHUSH THAA JAISE DAAYNAASOR KAA JEEVIT ANDAA LE AAYA HO . JAB VAH UTTAR BHAART ME BITORE YAA BURJ DEKHATAA THAA UNHEN BHEE DAAYANASOR KE ANDE HEE SAMAJHATAA THAA AB BHEE BAHUT KUCH HE BAANTANE , BATANE KO PAR IS BAAR KE LIYE BAS ……………………..DHANYVAAD
glynnis said
Yeh bandar ki papdi maine khayee hai, Hum Bachpan mein jahan rehte the waha ek bohat bada ped tha. Garmi ke mausam mein us ped se yeh bandar ki papdi guchhon mein sookh kar gerti thi, jab in ko cheela jaata hai to us ke andar se ek daana nikalta hai jo khane mein swadisht hota hai, iska swad kuch charoli jaisa hota hai.
Glynnis Pinto
arvind mishra said
आपने तो पहचान की मुहर ही लगा दी!
Deepak said
Bahut hi swad h
Raju said
bandar bati bahoot khaayi hai summer main udkar aa jati thi (garoth mandsaur)
timru and kirni meva bhi…
raokuldeepsingh said
70s में नीमच (मध्यप्रदेश) के बंगला एरिया में बहुत पेड़ देखे थे… चिरौंजी कहते थे इसे! शायद एक-आध बार खाई भी होगी। सागर (मध्यप्रदेश) की चिरौंजी बर्फी बहुत प्रसिद्ध है।
Sanjay said
फोटो वाली चिरौंजी और बर्फी वाली चिरौंजी में बहुत अंतर है और दोनों बिल्कुल अलग हैं।