कुछ कविताएं रुला देती है
Posted by सागर नाहर on 22, जून 2011
पिछले दिनों फादर्स डे पर फेसबुक में नीरज दीवान ने अपने स्टेट्स पर लिखा
…….बुज़ुर्गों का साया भी सुरक्षा कवच जैसा होता है..लगता है कि “हां..कोई है अपने साथ”-उनका दुनिया में रहना ही संबल देता है। जाने पर आप एकाएक अकेले हो जाते हैं..अब कुछ ऐसा ही है। पिता पर कोई गीत?
तो नेट पर खोजने पर कुछ अच्छे हिन्दी गीत और कविताएं मिली , लेकिन फिर पता नहीं क्या सूझा कि गुजराती में खोजने लगा, तो अनायास ही कुछ ऐसी कविताएं मिल गई, जिन्हें पढ़ कर आँख से आँसू छलक गए। बार- बार पढ़ी। फिर इच्छा हुई कि इनका हिन्दी अनुवाद कर हिन्दी के पाठकों को भी पढ़वाते हैं। मैने फेसबुक पर कवियत्री से अनुमति लेकर उनका हिन्दी अनुवाद किया।
ये कविता सुरत की युवा कवियत्री एषा दादा वाला ने लिखी है। इतनी कम उम्र में ऐषा ने कई गंभीर कविताएं लिखी है।
किसी प्रादेशिक भाषा से हिन्दी में अनुवाद इतना आसान नहीं होता। कई शब्द ऐसे होते हैं जिनको हम समझ सकते हैं लेकिन उनका दूसरी भाषा उनके उचित शब्द खोजना मुश्किल होता है। मसलन गुजराती में एक शब्द है “निसासो” यानि एक हद तक हिन्दी में हम कह सकते हैं कि “ठंडी सी दु:खभरी साँस छोड़ना! लेकिन गुजराती में निसासो शब्द एक अलग भाव प्रस्तुत करता है। जब कविता को अनुवाद करने की कोशिश की तो इस तरह के कई शब्दों पर आकर अटका।
खैर मैने बहुत कोशिश की कि कविता का मूल भाव या अर्थ खोए बिना उसका सही अनुवाद कर सकूँ, अब कितना सफल हुआ यह आप पाठकों पर…
डेथ सर्टिफिकेट :
प्रिय बिटिया
तुम्हें याद होगा
जब तुम छोटी थी,
ताश खेलते समय
तुम जीतती और मैं हमेशा हार जाता
कई बार जानबूझ कर भी!
जब तुम किसी प्रतियोगिता में जाती
अपने तमाम शील्ड्स और सर्टिफिकेट
मेरे हाथों में रख देती
तब मुझे तुम्हारे पिता होने का गर्व होता
मुझे लगता मानों मैं
दुनिया का सबसे सुखी पिता हूँ
तुम्हें अगर कोई दु:ख या तकलीफ थी
एक पिता होने के नाते ही सही,
मुझे कहना तो था
यों अचानक
अपने पिता को इतनी बुरी तरह से
हरा कर भी कोई खेल जीता जाता है कहीं?
तुम्हारे शील्ड्स और सर्टिफिकेट्स
मैने अब तक संभाल कर रखे हैं
अब क्या तुम्हारा “डेथ सर्टिफिकेट” भी
मुझे ही संभाल कर रखना होगा?
*****************
पगफेरा
बिटिया को अग्निदाह दिया,
और उससे पहले ईश्वर को,
दो हाथ जोड़ कर कहा,
सुसराल भेज रहा हौऊं,
इस तरह बिटिया को,
विदा कर रहा हूँ,
ध्यान तो रखोगे ना उसका?
और उसके बाद ही मुझमें,
अग्निदाह देने की ताकत जन्मी
लगा कि ईश्वर ने भी मुझे अपना
समधी बनाना मंजूर कर लिया
और जब अग्निदाह देकर वापस घर आया
पत्नी ने आंगन में ही पानी रखा था
वहीं नहा कर भूल जाना होगा
बिटिया के नाम को
बिना बेटी के घर को दस दिन हुए
पत्नी की बार-बार छलकती आँखें
बेटी के व्यवस्थित पड़े
ड्रेसिंग टेबल और वार्डरोब
पर घूमती है
मैं भी उन्हें देखता हूँ और
एक आह निकल जाती है
ईश्वर ! बेटी सौंपने से पहले
मुझे आपसे रिवाजों के बारे में
बात कर लेनी चाहिए थी
कन्या पक्ष के रिवाजों का
मान तो रखना चाहिए आपको
दस दिन हो गए
और हमारे यहाँ पगफेरे का रिवाज है।
दोनों कविताएं *एषा दादावाला*
अनुवाद: सागर चन्द नाहर
कविता को अनुवाद करने में कविताजी वर्मा का सहयोग रहा, उनका बहुत बहुत धन्यवाद।
Dipak said
aapne sach me rula diya. dhanyawaad aisi chhupi hui khajano ko saamne lane me…..next week milta hu aapse secunderabad me
kavita said
sagarji bahut achchhi kavitayen hai…apane bhavon ko preshit karne me safal rahi hai….aage bhi aise hi moti milate rahenge is ummed ke sath …
Sharda Arora said
behad samvedansheel
समीर लाल said
कोई शब्द नहीं…छलकती आँखों के भाव पहुँचे…अद्भुत!!!
archana said
सच में रूला दिया………………..एषा ने….
Pinki said
Thanks for sharing gujarati poems !
Emotions will be same in any language .
If you don’t mind, I will like to share your page with Esha.
thanks, regards
indupuri said
उफ़…भीतर से जैसे किसी ने मथ दिया. नही कुछ नही लिख पाऊँगी कि कैसी लगी कविता.एक पिता के दर्द को उड़ेल दिया है ….’डेथ सर्टिफिकेट’ और …मात्र ‘पग फेरे’ शब्द ने ही.
Nivedita Srivastava said
इस को कविता कैसे कहूँ ….ये तो आत्मा के स्वर हैं …….काफ़ी देर नि:शब्द बैठी रह गयी अब सोचा लिखने को तो अभी भी नि:शब्द ही हूँ ….. मौन के ही स्वर पहुँचे …….
बसंत जैन said
सागरभाई अद्भुत बहुत ही संवेदनशीलता है कविता मे और आपने शब्दोँ को ऐसा सजाया है कि लगता है मूल कविता हिन्दी मे ही लिखी गई है ऐषा दादावाला के बारे मे उपलब्ध जानकारी बताऐँ !
shuaib said
हां वाकई दिल को छोने वाली कवित है।
rakesh kumar said
Bahut aacha anuwad kiya hai aapne khaskar death certificate ka.Aap agar “girl with the dragon tattoo” ka hindi main anuwad kar ke daale to aapka blog no 1 ho jayega.
bhashasamvad said
सागर भाई
एषाबेन की ये कविता आँख के आँसू की धार लगा देती है.
क्या मालूम क्यों बेटी के साथ एक अजीब रूहानी रिश्ता होता है माता-पिता का.
मेरा विवाह हुए पच्चीस बरस हो गये लेकिन आज भी जब पत्नी को अहमदाबाद (अपनी ससुराल) के लेकर
विदा होने को होता हूँ तो ससुरजी वैसे ही फ़ूट-फ़ूट कर रोने लगते हैं जैसे अपनी बेटी को पहली बार विदा करके रो रहे थे.
इस पर वाह नही;आह ! निकलवा ली है आपने…
बहुत आभार आपका.
एक्शन रिप्ले.. « ॥दस्तक॥ said
[…] on एक्शन रिप्ले..bhashasamvad on कुछ कविताएं रुला देती हैjaved on 63 सालों का इतिहासrakesh kumar on कुछ […]
reena borana said
kehne ke liye shabd nahi aur aankho ke aansu kuch likhna namumkin sa kiye ja rahe h…par dhanyawad ke shabd kehne ke liye in aansuon ko kuch der ke liye rok liya…dhanyawad aapka aur esha ka….adbuth, sunder, marmik..kya khu aur
sahista said
AAPNE JO BHI LIKHA ITS BEAUTYFULL
deeksha dubey said
bahut hi khoobsurat sagar ji !!!!!!!!!!! its sooooo touching thanks….
Rajeev Upadhyay said
Ye wo dard hai jo kisi ko mahshosh naa ho. Wo chehra, wo baatein, kuchh bhi bhulaye nahi bhoolta.
harshita jaiswal said
sach me bahut best &heart touching kavita hain…….
om said
aapko humara sallaaaam hai ji
mital chavda said
Excellnt!!!its really heart touching…
manish tiwari said
V.v.nice
priyanka sant dongre said
really heart touching.
jagrati tiwari said
very nice
S. PUSHP RAJ said
AAP KI KAVITA BAHUT ACCHI LAGI SUCH ME RULA DENE WALI HAI. PLEASE KOI AAP KI IS TARAH KI KAVITA SANGRAH HO TO BHEJE
Pradip Chourasia said
Bahut rulaya tha usne, aakho me nhi palko me dafnaya tha usne.
Mai kiya tha mazak ek din ki tujhe chorr jauga,
Or usne haskr kaha tha, kash wo din jaldi aiye jub tu mujhe chorr jaye.
Mai rud gaya or kaha, tu mujhe sachmuch me pyar karti h.
Or usne fir muskurakar kaha, mai is baat se kvi nhi inkaar karti h.
Agar tujhe mout aiye to mai teri kafan banugi, par tera ky bharosa……………?
Or isi bich mai keh para, wo kabar nhi bani jaha teri maiyyat samaye or mujhe pehle khuda tujhe kaha le jaye.
Wo din vi aiya jub logo ne mujhe chita pe litaya.
Bin puche hi usse logo ne mujhe jalaya.
Jub chale gaye log samshaan Susana tha.
O mere pas aiye, mere rakh ko apne hoto se lagayi.
Or boli dil me bada gum h lekin palko me jagah kam h.
Fir vi mai tujhe khud me dafnaugi, tere raakh ko kajal banaugi.
Nhi royugi kvi kahi tu gir na jaye, nhi soyugi kvi kahi tu dur na jaye.
Tujh se kiya wada nivaugi mai piya ghar vi jaugi.
Lagakar tujhe akho me laal jodi me samaugi.
Tu vi to lega mere sang saat fere.
Isi bahane teri dulhan bun jaugi.
By: Pradip Chourasia
Dedicated to Moni Singh
नयन वाकडे said
सर बहूत ही अच्छी कविता हे।।।।
kavi bhanu sharma said
बहूत खूब लिखा आपने
Ravi Maurya said
आंखो से आंसू आ गए , जिसने भी इस कविता को पोस्ट किया है उसे मैं अपनी दिल की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं ।