॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

Archive for the ‘पहेली’ Category

चित्र पहेली का हल: जोनाथन नेतान्याहू

Posted by सागर नाहर पर 13, सितम्बर 2006

मेरी चित्र पहेली का सौभाग्य का दिन कल उदय हुआ जब पहली बार किसी ने मात्र कुछ ही मिनीटों में पहेली को हल कर दिया। सही उत्तर सबसे पहले पंकज भाइ ने दिया कि यह चित्र जोनाथन नेतान्याहू का है। पहेली के इतनी आसानी से हल हो जाने पर और पंकज भाइ से पूछ कर उत्तर को मिटा दिया ताकि ज्यादा लोग मेहनत करें, और तभी नितिन बागला जी, और प्रमेंद्र प्रताप जी ने उत्तर दे दिया, उधर विजय सिंगापुरी जी ने कुछ इशारा कर ही दिया था कि ये कौन हो सकते है।

जी हाँ इन सब के उत्तर सही है, वे सारे चित्र इस्रायल के महान सैनिक जोनाथन नेतान्याहू के ही थे, जिन्होने बहुत बहादुरी से एक ऐसे मिशन को पूरा करने में अपने प्राण गवाँये जिसकी कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस मिशन का नाम था ओपरेशन थंडर बोल्ट! चुँकि यह पूरा मिशन युगांडा के एन्टेबी एयर पोर्ट पर हुआ था इस लिये इसे ” ओपरेशन एन्टेबी भी कहा जाता है, परन्तु जोनाथन नेतान्याहू की शहादत के बाद इस मिशन का नाम उनके सम्मान में बदल कर ओप्रेशन जोनाथन कर दिया गया है।

जब सही हल मिल ही गया है तो पूरी कहानी लिखने की बजाय इस की कड़ी ही बता देता हुँ जहाँ से आप ज्यादा जानकारी पा सकते हैं। http://www.palestinefacts.org/pf_1967to1991_entebbe.php
http://www.specwarnet.net/miscinfo/entebbe.htm
http://www.britishcouncil.org/learnenglish-central-history-entebbe.htm
http://en.wikipedia.org/wiki/Operation_Entebbe

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चित्र पहेली-6

Posted by सागर नाहर पर 12, सितम्बर 2006

तो प्रस्तुत है मित्रों एक और चित्र पहेली, यहाँ दिया गये चित्र एक बहादुर सैनिक अधिकारी के है, जिन्होने अपने देश के लोगों को बचाते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। आपके मन में प्रश्न जरूर उठा होगा कि प्राणों की आहूति तो हजारों- लाखों सैनिकों ने दी इनमें क्या खास बात है?

इस महान सैनिक की खास बात यह है कि उन्होने अपने प्राण ऐसे मिशन पर गवाँए, जैसा मिशन हमारा भारत देश चाहकर भी नहीं कर पाया और दुश्मन (अपराधी) के सामने अपने घुटने टिका दिये थे।

और हाँ इनके भाई बाद में एक देश के प्रधानमंत्री भी बने थे…. आपको यह बताना है कि नीचे दिये गये चित्र में जो महान सैनिक है उनका नाम क्या है और वे किस मिशन में वे शहीद हुए थे?

(इस पहेली का उत्तर देने में पिछली बार ही की तरह एक दो दिन का समय लग सकता है)

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चित्र पहेली का हल: बेऑबॉब

Posted by सागर नाहर पर 11, सितम्बर 2006

क्या आपने किसी ऐसे वृक्ष के बारे में सुना है या पढ़ा है जिसके तने में हजारों लीटर पानी भरा रहता हो? या जिसके तने में घर, दुकान, अस्पताल या अस्थायी जेल तक बनाई जाती हो? या जिसकी उम्र हजारों वर्ष हो? जी हाँ चित्रपहेलीमें जो वृक्ष आपने देखा है उस वृक्ष में ये सारी विशेषतायें है। इतना ही नहीं इस वृक्ष की और भी हजारों विशेषतायें है। जिनमें से कुछ का वर्णन आगे किया जा रहा है।

Baobab

इस वृक्ष का नाम है बेऑबॉब (Baobab) है इसे लेटिन भाषा में Adansonia Digitata और इसे The Monkey Bread Tree, The world Tree,The Cream of Tartar Tree, Lemonade Tree, Sour Gourd Tree के अलावा और भी कई नामों से पुकारा जाता है। अरबी भाषा में इसे बुहिबाबकहा जाता है जिसका अर्थ है कई बीजों वाला पेड़, शायद इसी बुहिबाब शब्द का अपभ्रंश रूप है बेऑबॉब।

बेऑबॉब का अफ़्रीका के आर्थिक विकास में काफ़ी योगदान होने की वजह से अफ़्रीका ने इसे The world Tree की उपाधि भी दी है और संरक्षित वृक्ष के रूप में भी चुना है।अफ़्रीकामूल के मेडागास्कर और ऑस्ट्रेलिया में में पाये जाने वाले इस बेऑबॉब वृक्ष  की सबसे पहली पहचान है इसका उल्टा दिखना यानि इसको देखने परआभास होताहै कि मानों पेड़ की जड़े ऊपर, और तना नीचे हो।

बेऑबॉब के इस रूप के बारे मेंकिवंदती  है कि पहले यह पेड़ सीधा था परन्तु फ़लते-फ़ूलते इसने दूसरे पौधों और पेड़ों को मिलने वाले हवा और सूर्य प्रकाश को रोक दिया।परमात्मा को गुस्सा आया और उन्होने इस पेड़ को जड़ से उखाड़ कर उल्टा लगा दिया, बेऑबॉब के बहुत मिन्न्तें करने पर भगवान ने इस पेड़ को एक छूट दी कि साल केमहीने इस पर पत्ते लग सकते हैं बाकी के समय में यह पेड़ एक ठूंठ की भाँति दिखेगा। यह तो एक किवंदती है परन्तु आज भी इस पेड़ पर पत्ते सालमें सिर्फ़ महीने के लिये ही लगतेहैं, बाकी समय में यह एकदम सूखा दिखताहै।

इस पेड़ की दूसरी पहचान यह हैकि इसका तना४०/५०या १००से१२०फ़ुट तक चौड़ा होताहै। कहीं कहीं तो १८० फ़ूट तक पाया गया है। और यहीं से इस पेड़ का दूसराआश्चर्य शुरू होताहै, इस पेड़ के तने में हजारों लीटर (,२०,००० लीटर तक) शुद्ध पानी भरा रहता है।बेऑबॉब का यह पानी जब वर्षा ना होती हो तब पीने के काम आता है।अफ़्रीका के कई कबीलों में इस पेड़ के नीचे पंचायतों की बैठकें होती है,विवादों का निबटारा किया जाता है और आदिवासी लोग इस पेड़ के नीचे अपना गुनाह भी कबूल करते है। पेड़ की साईज के बारे में कुछ जानकारी यहाँ भी मौजूद है

बेऑबॉबकी उम्र ६००० वर्ष तक ( कार्बन डेटिंग पद्दती से प्रमाणित) पाई गयी गई हैIsland off Verde में दो पेड़ आज भी मौजूद हैं जिनकी उम्र ५००० से भी ज्यादा मानी जाती है।

हमने कहानियों में कल्प वृक्ष के बारे में पढ़ा सुना है और वर्तमान में नीम इसका श्रेष्ठ उदाहरण है जिसका प्रत्येक अंग का अपना उपयोग है इसी तरह बेऑबॉब के इतने सारे उपयोग है कि एक बड़ी सी किताब लिखी जा सकती है, यहाँ मैं उनके उपयोग संक्षिप्त में बताने की कोशिश करूंगा।

तने के कुछ उपयोग के बारे में तो मैने आपको उपर बताया ही है कि इस के तने में घर, दुकान, अस्पताल और अस्थायी जैल का काम भी लिया जाता है। अफ़्रीका के डर्बी शहर से १०० कि, मी दूर आज भी एक ऐसा पेड़ मौजूद है जिसको जेल के तौर पर काम में लिया जाता है।

बेऑबॉब की छाल में ४०% तक नमी होती है और इस वजह से यह जलाने के काम नहीं आती परन्तु तने की भीतरी छालफ़ाईबर जैसी होती है, से कागज, कपड़े, रस्सी, मछली पकड़ने के जाल, धागे, बास्केटऔर कंबल जैसी हजारों वस्तुएं बनाई जाती है।

फ़ूल

बेऑबॉब के पेड़ पर पहली बार फ़ूल ( १२ सेमी तक लम्बे) पेड़ की २० वर्ष की आयु में अप्रेल मईमेंलगते है जो कि अल्पायु के लिये ही होते हैं और रात्रि में ही खिलते हैं।। फ़ूलों का रंग सफ़ेद एवं बडे़ बड़े होते हैं। पराग कणों से भी गोन्द बनाया जाता है।

फ़ल

फ़ल ककड़ी ( खीरा) की तरह और गूदेदार होते हैं और १ फ़ूट तक लंबे होते हैं( कई बार गोल भी होते हैं , जो बन्दरों को बहुत प्रिय होते है, और इसीवजह से इसे The monkey breadtree भी कहा जाता है। फ़लों से कई तरह की दवाईयाँ बनती है जो Filarae, रक्तक्षीणता, अरक्तता (Anaemia) , Rachities, Dysentry, दमा (Asthma), Rhumatism, (अतिसार)Diarrhoea जैसे रोगों को दूर करने के काम आती है। इस फ़ल को सुखाने के बाद पाऊडर बनाया जाता है और इसे पानी में मिलाने से बहुत ही नारियल के पानी सा परन्तु स्वाद में नींबू पानी सा खट्टास्वास्थयवर्धक ( एक संतरे से ६ गुना ज्यादा विटामिन “c” ) पेय बनता है। छोटे फ़लों की कई तरह की गेंद बनाई जाती है।

एकफ़ल में तकरीबन ३० बीज होते है।बीजों से भी कई तरह की दवाईयाँ, गोन्द, कच्चा तेल और तेल साबुन बनाने के काम में प्रयोग किया जाता है।

पत्ते

केल्शियम से भरपूरपत्तों सेसब्जीबनतीहै, उबाल कर डिटर्जेंट पाऊडर की तरह काम में लिया जाता है, पेट में गैस होने पर प्रयोग की जाने वाली दवाई बनती है।

यह सारे इस वृक्ष के बहुत थोड़े उपयोग है। ज्यादा जानकारी के लिये आप गूगल में Baobab टाईप कर परिणाम देखें।

भारत में यह पेड़ किस तरह पहुँचे कोई प्रमाण नही मिलते हैं। सूरत शहर के कतारगाम में अनाथआश्रम के सामने दो पेड़ और सरथाणा चुंगी नाका के सामने बने चिड़ियाघर में भालू के पिंजरे के पास एक पेड़ हजारों वर्षों से अड्डा जमाये हुए हैं। अगर कभी सूरत जाना हो तो यह पेड़ अवश्य देखना चाहिये। गुजराती में इसेगोरख आंबली (ईमली)” कहा जाता है।इसलिंकपरदियागयापेड़सुरतस्थितपेड़जैसादिखताहै।

एक अफ़सोस की बात और लिख दूँ कि सुरतमहानगर पालिका को इस पेड़ के बारे में कोई जानकारी नहीं है और यह पेड इतना महत्वपूर्ण है फ़िर भी सुरत के इस बओबॉब पेड़ को बिल्कुल भी महत्व नहीं मिल रहा है।

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चित्र पहेली

Posted by सागर नाहर पर 7, सितम्बर 2006

बहुत दिनों के बाद एक बार फ़िर लेकर रहा हूँ चित्र पहेली! हाँ तो मित्रो यहाँ प्रस्तुत है दुनियाँ के सबसे अजीब वृक्ष के कुछ चित्र जो भारत में बहुत कम पाये जाते हैं, ( मेरी दृष्टि में इसके भारत में सिर्फ़ तीन पेड़ है और वह तीनों ही सुरत ( गुजरात में) में है। चुँकि यह पेड़ भारत के अन्य प्रदेशों में नहीं पाया जाता है, इस लिये इस का हिन्दी में नाम भी पता नहीं है, पर गुजराती में इसेगोरख आंबली कहा जाता है। यह वृक्ष अफ़्रीका में बहुतायत पाये जाते हैं।

शायद इस वृक्ष को हमारे चिट्ठाकारों के समूह में डॉ सुनील जी एवं मेरे सिवाय किसी ने नहीं देखा होगा पर इस बारे में अगर पढा़ हो तो दौड़ायें दिमाग। और हाँ इस वृक्ष की विशेषतायें इतनी कि गिनना मुश्किल! इस वृक्ष केलगभग 1800 से 2000 उपयोग हैं।

तो बताईये मित्रों इस वृक्ष का नाम क्या है और इस की विशॆषताएं क्या है?

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चित्र पहेल-४ का हल- लिवींग स्टोन “लिथोप्स”

Posted by सागर नाहर पर 10, मई 2006

कोई भी कड़ी नहीं देने के बावजूद भाई लोगों ने बहुत कोशिश की, किसी ने चॉकलेट किसी ने मशरूम तो किसी ने शरीर का कोई अंग बताया परन्तु में आप सबसे माफ़ी चाहुंगा क्यों कि इनमे से एक भी उत्तर सही नही है। हाँ समीर लाल जी ने हर बार की भाँति कुछ कोशिश की उन्होने पहले केक्टस बताया परन्तु पूर्ण विश्वास के साथ नहीं।

जी हाँ यह केक्टस तो नहीं परन्तु यह एक पौधा जरूर है। पत्थर की भांति दिखने वाला यह पौधा दक्षिण अफ़्रीका में बहुतायत रूप से पाया जाता है। इस पौधे का नाम है “लिथोप्स”

ग्रीक भाषा के “लिथो” यानि पत्थर और “आप्स” यानि “कि तरह दिखने वाला”। दो आपस में जुड़े पत्ते वाला यह पौधा रेगिस्तानी इलाकों में पाया जाता है, इस वजह से इसको पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है। पहेली में दिखाये गये चित्र की भांति इस के पत्तों पर तरह तरह की डिजायन बनी हुई होती है; जो देखने में बहुत सुन्दर होती है, मानो रंग बिरंगे जवाहरात बिखरे पड़े हों और इसी वजह से इसे “लीवींग स्टोन ” भी कहा जाता है। पत्थर की भांति दिखने की वजह से यह जीव जन्तुओं से बचा रहता है और इसी वजह से इस पौधे की उम्र ९० से लेकर १०० साल तक पाई जाती है। नवंबर से मार्च तक इन पौधों पर रंग बिरंगे और खुशबुदार फ़ूल लगते हैं

अब आप गूगल भैया से लिथोप्स कि बारे में ज्यादा जानकारी पुछेंगे तो इस पौधे की विशेषताएं जानकर हैरान रह जायेंगे।

काश कोई ऐसा सर्च इंजन होता जिसमे “दस्तक” के चित्र पहेली के चित्रों को पेस्ट कर ये पता लगाया जा सकता कि ये चित्र किसका हैं तो सागर चन्द नाहर की चित्र पहेली की हवा निकल जाती।

मन्ने तो यान लागे हे सागर के तने अब ब्लोगिंग करता चित्र पहेली ज्यादा “सूट” करे है, क्यूं युगल जी?




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चित्र पहेली – 4

Posted by सागर नाहर पर 9, मई 2006

प्रस्तुत है एक और चित्र पहेली, यहाँ दिखाये गये चित्र को पहचानिये; यह क्या है। इस पहेली में कोई कड़ी /हिन्ट नहीं दी जा रही है, नहीं नहीं …यह पत्थर नहीं है!!!!!!!

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चित्र पहेली-३ का उत्तर

Posted by सागर नाहर पर 4, मई 2006

बहुत अरमानों के साथ चित्र पहेली शुरु की थी पर लगता है कि किसी को इसमें रुचि नहीं है पर जब पहेली पुछ ली तो उसका उत्तर देना आवश्यक है, सो इसका उत्तर दे रहा हुँ पहला चित्र हिटलर के सेनापति एडॉल्फ़ आईकमान का हे और दुसरा चित्र कम्बोडिया के तानाशाह पॉल पॉट का है. अगर आप इनके बारे में ज्यादा जानना चाहते हों तो लिखें या, यहाँ और यहाँ देखें.

जानकारी गुजराती मासिक पत्रिका “सफारी” से साभार

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चित्र पहेली -३

Posted by सागर नाहर पर 29, अप्रैल 2006

चित्र पहेली के इस अंक में जो चित्र यहाँ कुछ चित्र प्रस्तुत है, यह विश्व इतिहास के सबसे क्रुर खलनायकों के है, पहले चित्र में जो खलनायक है उसके लिये एक आदमी की जिन्दगी की कीमत एक बंदूक की गोली से भी सस्ती थी इसलिये इस खलनायक ने अपने अधीनस्थ कार्यकर्ताओं को लोगों को मारने के लिये कुछ दूसरा इन्तजाम करने को कहा। आखिरकार शुरु हुआ लोगो को मारने का सिलसिला इस जल्लाद ने बच्चों और महिलाओं को भी नही बख्शा!!!!!!लाशों पर गहने तो कहाँ से होते अगर कहीं मुँह में सोने का दाँत होता तो उसे उखाड़ने से भी इसके अधीनस्थ नहीं चूकते


दूसरे जल्लाद को देखिये, इसके के बारे में कुछ कहने के बजाय उसकी क्रूरता के कुछ चित्र देखिये इस जल्लाद ने अपना कहा ना मानने वालों की क्या दुर्गती की है देखिये और इसके मरने के बाद खुद इस की पत्नी और इसकी बेटी ने इसकी लाश को पुराने फ़र्नीचर,टायर, कचरे और गोबर से जला दिया


पहचानिये इन्हें कौन है ये ?

जानकारी गुजराती मासिक पत्रिका “सफारी” से साभार

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चित्र पहेली-२ का हल: रामप्पा मंदिर

Posted by सागर नाहर पर 24, अप्रैल 2006

आर्किमिडीज के सिद्धांत के अनुसार पानी में वही वस्तु तैर सकती हे जो अपने वजन जितना पानी हटाये. तो क्या पानी में पत्थर तैर सकता है? नहीं !! क्यों कि पत्थर द्वारा हटाये गये पानी से पत्थर का वजन कई गुना ज्यादा होता है सो वह पानी में डूब जायेगा.

आप सोच रहे होंगे कि मंदिर कि बात में यह आर्किमिडीज का सिद्धांत कहाँ आ गया ? मंदिर और इस सिद्धांत का क्या लेना देना परन्तु शायद नहीं मानेंगे कि इस मंदिर ने आर्किमिडीज के सिद्धांत को गलत साबित कर दिया है. चलिये पूरी बात बताते है.

इस्वी सन १२१३ में वरंगल के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव को एक शिव मंदिर बनाने का विचार आया. उन्होनें अपने शिल्पकार रामप्पा को एसा मंदिर बनाने को कहा जो वर्षों तक टिका रहे. रामप्पा ने की अथक मेहनत और शिल्प कौशल ने आखिरकार मंदिर तैयार कर दिया. जो दिखने में बहुत ही खुबसुरत था, राजा बहुत प्रसन्न हुए और मंदिर का नाम उन्होने उसी शिल्पी के ही नाम पर रख दिया ” रामप्पा मंदिर” यह शायद विश्व का एक मात्र मंदिर हे जिसका नाम भगवान के नाम ना होकर उसके शिल्पी के नाम पर है.

कुछ वर्षों पहले लोगो को ध्यान में आया कि यह मंदिर इतना पुराना है फ़िर भी यह टूटता क्यों नहीं जब कि इस के बाद में बने मंदिर खंडहर हो चुके है. यह बात पुरातत्व वैज्ञानिकों के कान में पड़ी तो उन्होने पालमपेट जा कर मंदिर कि जाँच की तो पाया कि मंदिर वाकई अपनी उम्र के हिसाब से बहुत मजबूत है. काफ़ी कोशिशों के बाद भी विशेषज्ञ यह पता नहीं लगा सके कि उसकी मज़बूती का रहस्य क्या है, फ़िर उन्होनें मंदिर के पत्थर के एक टुकड़े को काटा तो पाया कि पत्थर वजन में बहुत हल्का हे, उन्होने पत्थर के उस टुकड़े को पानी में डाला तो वह टुकड़ा पानी में तैरने लगा यानि यहाँ आर्किमिडिज का सिद्धांत गलत साबित हो गया. तब जाकर मंदिर की मज़बूती का रहस्य पता लगा कि और सारे मंदिर तो अपने पत्थरों के वजन की वजह से टूट गये थे पर रामप्पा मंदिर के पत्थरों में तो वजन बहुत कम हे इस वजह से मंदिर टूटता नहीं.

अब तक वैज्ञानिक उस पत्थर का रहस्य पता नहीं कर सके कि रामप्पा यह पत्थर लाये कहाँ से क्यों कि इस तरह के पत्थर विश्व में कहीं नहीं पाये जाते जो पानी में तैरते हों. तो फ़िर क्या रामप्पा ने 800 वर्ष पहले ये पत्थर खुद बनाये? अगर हाँ तो वो कौन सी तकनीक थी उनके पास!! वो भी 800-900 वर्ष पहले!!!!!

रामप्पा या राम लिंगेश्वर मंदिर आन्ध्र प्रदेश के वरंगल से 70कि. मी दूर पालम पेट में स्थित है. यह मंदिर 6 फ़ीट ऊँचे मंच ( प्लेट फ़ार्म) पर बना हुआ है,इस मंदिर के बारे में ज्यादा जानकारी यहाँ मिल सकती है.

जानकारी गुजराती मासिक पत्रिका “सफारी” से साभार

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चित्र पहेली-2 कड़ी-2

Posted by सागर नाहर पर 23, अप्रैल 2006


लंका कांड से मेरा आशय यह था कि श्री राम जब पुल बनवाते हैं तो उस समय कुछ ऎसी बात होती है जो विज्ञान को चुनौती देती है . वैसे लंका कांड से इस मंदिर का कुछ लेना देना नहीं है. और यह मंदिर तो वैसे भी मात्र 900 वर्ष पुराना है, चलिये दुसरी कड़ी देता हुं कि इस मंदिर ने आर्किमिडिज के एक सिद्धांत को गलत साबित कर दिया है. साथ ही इस मंदिर का दुसरा फ़ोटो भी दे रहा हुँ.

जानकारी गुजराती मासिक पत्रिका “सफारी” से साभार

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