मैं अपने कॉफे में सिनेमा के टिकट भी बेचता हूं, क्यों कि मैने इजीमूवीज की फ्रेन्चाईजी ले रखी है। इस काम के लिये कुछ दिनों पहले मुझे एक थियेटर में जाना पड़ा, वहां एक बहुत बड़ा पोस्टर दिखा फिल्म थी शम्बो शिव शम्बो। इस पोस्टर पर एक नवोदित अभिनेत्री अभिनया का फोटो लगा था।
कॉफे में आकर उत्सुकता मैने गूगल में अभिनया को खोजा तो आश्चर्य चकित रह गया, क्यों ?
आप जानेंगे तो आप भी दंग रह जायेंगे कि मैं क्यों दंग था इस अभिनेत्री के बारे में जानकर। अगले दिन सुबह ही हिन्दी मिलाप के रविवारीय परिशिष्ट मिलाप मजा में अभिनया से संबधित एक छोटा सा संपादकीय लेख पढ़ा।
अब मैं गूगल पर जो कुछ देखा-सुना उसे बताने की बजाय हिन्दी मिलाप (मजा) में जो कुछ पढ़ा उसे ही अक्षरश: यहाँ टंकित कर रहा हूँ।
प्रेरणा:
किसी सामान्य व्यक्ति को विकलांग (मूक-बधिर) का रोल करते हुए तो आपने कई फिल्मों में देखा होगा (संजीवकुमार, जया भादुड़ी- फिल्म कोशिश) लेकिन क्या कभी किसी मूक-बधिर को, फिल्मों में सामान्य व्यक्ति का रोल करते हुए देखा है? जी हाँ, यह असंभव- सा लगने वाला कार्य कर दिखाया है- हैदराबाद की ही अभिनेत्री ’अभिनया’ ने। सुनहरे पर्दे पर उस सुंदरी के चेहरे को देखकर किसी को विश्वास ही नहीं होगा कि इतना अच्छा अभिनय करने वाली इस युवती से प्रकृति ने सुनने और बोलने की शक्ति छीन ली है। श्रव्य और वाक शक्तियों से वंचित होने के बावजूद उसने अपनी मस्तिष्क की तीसरी शक्ति के द्वार खोल दिये हैं और तमिल फिल्म ’नडोदिगल’ एवं तेलुगु फिल्म ’शम्भो शिव शम्भो’ में अपने अभिनय से ’अभिनया’ ने अपनी विकलांगता को ही विकलांग कर दिया।
इस हैदराबादी अभिनेत्री ’अभिनया’ ने अपने अभिनय द्वारा अपनी खामोशी को शब्द दिये हैं। अपने गूंगे और बहरेपन को हराने का लक्ष्य अभिनया ने बचपन से ही तय कर रखा था। मारेडपल्ली में मूक एवं बधिर स्कूल और बाद में मॉन्टेसरी तथा सेन्ट एन्स स्कूल तारनाका में पढ़ते हुए उसने सोचा था कि वह फिल्म स्टार बनेगी और अंतत: अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया।
पिता आनंद वर्मा ने अपनी सुन्दर बेटी की पैदाइश के समय ही सोचा था कि वे उसे अभिनेत्री बनाएँगे। इसीलिए उन्होने अपनी बेटी का नाम ’अभिनया’ रख दिया। लेकिन उस समय उस पूर्व सैनिक को पता नहीं था कि उनकी बेटी सुन नहीं सकती और बाद में यह भी पता चला कि कि वह बोल भी नहीं सकती। फिर भी उन्होने हिम्मत नहीं हारी। वे अभिनया को कई फिल्मों की शूटिंग पर ले जाते थे। जैसे जैसे वह बड़ी होने लगी, वह फिल्मों के पोस्टर्स की ओर इंगित कर, इशारों में ही उन्हें बताती कि एक दिन उन पर उसकी तस्वीर होगी।
माँ हेमलता बताती है कि संवादों के ले ’लिप-मूवमेन्ट’ समझते उसे देर नहीं लगती और मुश्किल से दो टेक में उसका शॉट ’ओके’ हो जाता है। उसके अभिनय को देखते हुए उसे एक और तमिल फिल्म के लिए साइन किया गया है।सच है कि समस्या चाहे जो हो, संकट चाहे जैसा हो, इच्छा शक्ति और कुछ करने का मजबूत इरादा उस संकटों को रास्ते से हटने पर मजबूर कर देता है।… और निश्चित ही यह कान और ज़बान वालों के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
सलाम अभिनया! आपकी इच्छा शक्ति को भी सलाम।
फोटो चेन्नै ओनलाईन से साभार