॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

बचपन की मिठाई – मीठी नुकती

Posted by सागर नाहर पर 15, फ़रवरी 2017


बचपन में किसी दावत से जीम कर आते तो मम्मी-पापाजी या अड़ौस-पड़ौस के काकासा- काकीसा पूछते “सागर-आज क्या जीम कर आए हो”? हम उन्हें बड़ी खुशी से बताते चने की दाल की और मीठी कैरी या मीठी मैथी की सब्जी! वे फिर पूछते अरे मिठाई में क्या था? हम कहते नुकती (मीठी बूंदी) या बेसन की चक्की (बर्फी) कभी बालूशाही और कभी सिर्फ जलेबी।

Nukti.jpg जीमाने वाला या परोसगारी करने वाला (हमारे यहाँ पुरस्कारी कहते हैं) भी मनुहार कर के एकाद टुकड़ा जबरन थाली में रख ही देता और हम उपरी मन से ना-नुकर करते उस मिठाई को फटाफट खा लेते ताकि दूसरे परोसगार को भी मनुहार करने का मौका मिल सके।
आहा! बचपन के उन जीमणों का क्या लुत्फ़ आता था।

आजकल अक्सर दावतों में जाना होता रहता है लेकिन वो आनन्द – लुत्फ़ नहीं रहा। बीस तरह की मिठाईयां, बीस तरह के चाट-पूड़ी आदि के स्टॉल, आठ तरह की रोटियां, दस तरह की सब्जियां और चार पाँच तरह की आईसक्रीम! पेट भर जाता है लेकिन मन कभी नहीं भरता, बीस तरह की मिठाईयों में एक भी ऐसी नहीं होती जो बचपन की नुकती और चक्की की बराबरी कर सके, और ना ही दस तरह की सब्जियां उस चने की दाल की या कैरी या मीठी मैथी की। जिमाने वाला कोई नहीं होता ना ही कोई मनुहार कर एक टुकड़ा मिठाई और खाने का आग्रह करने वाला।

बचपन! अभी तो मन भर के जीमे भी नहीं थे और तुम चले भी गए… काश एक बार फिर से लौट आते।

फेसबुक पर 21 जून 2014 को पोस्ट

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2 Responses to “बचपन की मिठाई – मीठी नुकती”

  1. Basant d jain said

    अब तो कौन मनुहार करेगा ….. अगर खाना है तो केटरींग वाले हैं भिखारी की तरह लाईन मे लग जाओ ….. बडा बुरा लगता है जब लाईन मे लगना पडता है भोजन लेने के लिये …. ऐसा लगता है जैसे किसी भंडारे की लाईन मे लगे हुये हों

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