॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

Archive for the ‘दुखद:’ Category

भगवान इतनी ह्रदयविदारक मौत किसीको ना दे!

Posted by सागर नाहर पर 4, सितम्बर 2009

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ वाई.एस. राजशेखर रेड्डी के दुखद: निधन के बाद कल आश्‍चर्यजनक रूप से सभी गणेश मंडलों ने  गणेशजी की प्रतिमाओं का वसर्जन एकदम सादगी से किया।  पिछले वर्षों में प्रतिमाऒं के साथ अनेक लोक कलाकार अगल- अलग वेशभूषाओं में अपनी अपनी कला  का प्रदर्शन करते हैं. लेकिन कल सड़कों पर एक्का दुक्का ही गाड़ियां दिखाई दे रही थी। सिकन्दराबाद में पांच साल रहते हो गये लेकिन पहली बार पैटनी चौराहे  और अन्य रास्तों को को 70-80  की स्पीड से क्रोस किया जबकि आम दिनों में 30 की गति से भी इस चौराहे को पार करना मुश्किल होता है।

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गणेश प्रतिमाओ के ले जारहे वाहनों पर/ के साथ पहली बार ना तो लाईट्स (हेलोजन) थी ना ही ढ़ोल- नगाड़े! लगभग हरेक वाहन पर सबसे आगे स्व. रेड्डी का आदमकद फोटो लगा हुआ था।

कल स्थानीय केबल ओपरेटरों ने भी समाचार चैनलों को छॊड़कर सभी मनोरंजन के चैनल को बंद कर दिया। तेलुगु के अलावा हिन्दी में मात्र स्टार न्यूज और अंग्रेजी में मात्र NDTV के अलावा सभी चैनलों को बंद कर दिया जिन्हें  स्व. मुख्यमंत्री के अंतिम संस्कार के बाद ही चालू किये जायेंगे।

तेलुगु चैनलों पर हेलिकॉप्टर के अलावा पांचों के शरीरों का जो हाल बताया वह दहला देने वाला था, स्थानीय लोग हाथों में उन शरीरों के अलग अलग अवशेष पकड़ कर ला  रहे थे, किसी के हाठ में किसी शव का हाथ था तो किसी के हाथ में एक मास का लोथड़ा!  बाद में उन्हें एक पोटली में बांध कर उपर उड़ रहे हेलिकॉप्टर में चढ़ाना पड़ा। भगवान इतनी ह्रदयविदारक मौत किसीको ना दे!

यह पंक्तिया लिखते समय कॉंग्रेस के कार्यकर्ता दुकान बंद करने का आग्रह (धमकी)  कर रहे हैं। सो आगे लिख  कर केफे का काँच फुड़वाने की बजाय घर ही जाना उचित होगा।

राम राम।

डॉ राजशेखर रेड्डी को हार्दिक श्रद्धान्जली।

फोटो गूगल से साभार।

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श्रद्धान्जली..

Posted by सागर नाहर पर 31, मई 2008

प्रिय…

मैने आपको कभी देखा नहीं। पर पिछले बरस आज ही के मनहूस दिन… जब आप चली गई यूं लगा कोई मेरा अपना चला गया हो।

आपका फोटो भी मेरे पास नहीं है यहाँ लगाने के लिये … निशी कहती है  आप तारा  हो गई  हो, सच ही तो कहती है निशी।

मैं कहता हूँ आप रोशनी बन  अपनों की आँख में समा गई हो.. बस आपका नया फोटो ही  ( रोशनी का) लगा देता हूँ। क्यों ठीक है ना? आप जहां हो खुश रहो।

जब भी निशा याद आती है आप भी याद आती हो।

आज आपकी पहली पुण्य तिथी पर  हार्दिक श्रद्धाजली.. अर्पित करते हैं।

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(फोटो प्रणव सेठ के फ्लिकर से साभार…)

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संरक्षित: समय बड़ा बलवान-२

Posted by सागर नाहर पर 10, मार्च 2007

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संरक्षित: तेरी दुनिय़ाँ से दिल भर गया नारद

Posted by सागर नाहर पर 10, मार्च 2007

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निर्मला सागर को शोक

Posted by सागर नाहर पर 26, सितम्बर 2006

मीरा बाई के भजन” के नाम से लिखने वाली चिट्ठाकार और मेरी पत्नी श्रीमती निर्मला सागर की बुवा की १६ वर्षीय पुत्री निशा का आज सुबह सूरत में प्रात: १०.०० बजे निधन हो गया।
दिनांक १६-०९-२००६ को जब अपनी सहेली के साथ निशा कॉलेज जा रही थी तब ताप्ती नदी के पुल पर एक ऑटो ने अचानक ब्रेक मार दिया और पीछे स्कूटी चला रही निशा संभल नहीं पाई और ऑटो से टकरा कर गिर पड़ी जब तक उठती पीछे आ रहा ट्रेकटर उन दोनो के उपर चढ़ चुका था, निशा की सहेली ने तो घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया, निशा का १० दिन अस्पताल में रहने के बाद सुबह निधन हो गया।
जब मेरी सगाई की बात चल रही थी, और मैं निर्मला जी को देखने गया थ, तब निशा १ वर्ष की थी और निर्मला जी निशा को गोद में लेकर हमारे पास आई थी, हम निर्मला जी से क्या बातें करते निशा को खिलाने लग गये, बस तब से उस बच्ची के साथ स्नेह का ऐसा रिश्ता बना जो वर्णन कर पाना मुश्किल है।
मई महीने में रात को १० बजे एक बार मैने फ़ोन किया तो निशा के पापा दिनेश जी का कहना था कि वे अभी थियेटर में है क्यों कि निशा ने कहा है कि पापा आज फ़िल्म दिखाओ और आप जानते हो मैं निशा की कोई बात नहीं टाल सकता और वैसे भी निशा का मेरा साथ है ही कितना शायद ४ या ५ साल, बाद में तो उसे दूसरे घर जाना ही है!!
क्या पता कुदरत को क्या मंजूर था कि निशा का हम सबके साथ ४-६ साल नहीं बल्कि ४-६ महीनों का ही है।
उस मासूम की शक्ल आँखों के सामने से नहीं हटती। भगवान निशा की आत्मा को शान्ति दे

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“क्रोकोडाईल हंटर” स्टीव इरविन नहीं रहे!

Posted by सागर नाहर पर 4, सितम्बर 2006

आज की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण खबर यह है कि डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफ़िक और एनिमल प्लेनेट चैनल पर मगरमच्छों और अजगरों के साथ खेलते और उन्हें पकड़ते दिखते ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरणविद स्टीव इरविन का एक जहरीली मछली के काटने से निधन हो गया है। स्टीव की बहादुरी के चलते उन्हेंक्रोकोडाईल हंटरभी कहा जाता था।

डिस्कवरी के लिये अनेक फ़िल्में बनाने वाले इस बहादुर को साँपो और मगरमच्छों से कभी डर नहीं लगा परन्तु ग्रेट बेरियर रीफ़ के पास समुद्र में हो रही एक शूटिंग के दौरान उन्हें एक छोटी सी स्टिंगरे नामक जहरीली मछली के काट लेने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया परन्तु स्टीव को बचाया नहीं जा सका। नीचे दिये चित्र में स्टिव अपने बच्चे और मगरमच्छ के साथ खेल रहे हैं, एक बार उन्होनें अपने छोटे से बच्चे को अजगर के बाड़े में छॊड़ दिया था इस वजह से उनकी बहुत आलोचना भी हुई थी।

हिन्दी चिट्ठा जगत की ओर से इस बहादुर को हार्दिक श्रद्धान्जली। steve

steve1

with baby

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ऋषिकेश मुखर्जी ( ऋषि दा) अब नहीं रहे

Posted by सागर नाहर पर 27, अगस्त 2006

मेरी सबसे ज्यादा पसंदीदा फ़िल्म अनुराधा, बावर्ची, गुड्डी, नमक हराम,आनंद  और सत्यकाम जैसी फ़िल्मों के महान निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी का आज निधन हो गया। उनके जाने के साथ ही हमने सामाजिक समस्याओं पर हल्की फ़ुल्की फ़िल्म बनाने वाले निर्देशक को हमने खो दिया है, भगवान ऋषि दा की आत्मा को शान्ति प्रदान करें!

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एक और प्रिंस:जो न बच सका !

Posted by सागर नाहर पर 25, जुलाई 2006

हरियाणा के प्रिंस के बच जाने से दुनियाँ भर में खुशी की खबर फ़ैल गई है, बिल्कुल ऐसा ही वाकया आज से लगभग तीन साल पहले गुजरात के मोरबी के पास में एक गाँव में हुआ था पर अफ़सोस उस मासूम बच्चे को नहीं बचाया जा सका था।

अपने मायके आयी उस मासूम बच्चे अजय की माँ खेतों में कपड़े धोने गई हुई थी, पास में लगभग साल के अजय को बिठा दिया और कपड़े धोने लगी। पास में एक सूखा बोरवेल था और खेत के मालिक ने उस बोरवेल के मुँह को बोरीयों से बांध दिया था, बोरीयां बारिश के पानी लगने से सड़ चुकी थी, मासूम अजय खेलते खेलते उस बोरिंग के पास चला गया और उस पर जैसे ही बैठने की कोशिश करने लगा, उस की माँ की नजर जब तक अजय पर पड़ती अजय उस पर बैठ चुका था, जब तक माँ दौड़ कर अजय के पास आती सड़ी बोरियाँ फ़ट गई और अजय सीधा उस बोरवेल के पाईप में लगभग २०० फ़ूट नीचे पहुँच चुका था।

सेना ने, मुंबई दमकल विभाग ने और कई विदेशी विशेषज्ञों की सलाह लेने के बाद बहुत कोशिश की अजय को बचाने की परन्तु लगभग तीन दिन की मशक्कत व्यर्थ हुई और आखिरकार मासूम अजय को नहीं बचाया जा सका। बाद में उस बोरवेल को मिट्टी से भर दिया गया।

तीन दिनों तक समाचार पत्रों, स्थानीय और प्रांतीय टी वी चैनलों में अजय ही छाया रहा, जब भी यह सब दिखता आँख से आँसू निकल जाते, खाना खाते समय अजय की बात याद जाती तो कौर गले नहीं उतरता था।

आज उस अजय की माँ के मन पर क्या बीती होगी कि काश उस का अजय भी बच पाता!

ऐसे दर्दनाक वाकये को भी लोग मजाक में ले लेते है, जिस माँ के बच्चे पर यह सब बीती हो वही इस दर्द को बयाँ कर सकती है। हमारे बच्चे को लगी मामूली खरोंच भी हमसे सहन नहीं होती, और कुछ लोगों को इस वाकये में भी व्यंग्य सूझता है।

सबको सन्मति दे भगवान….

र्ड प्रेस पर यह नया चिठ्ठा निधि जी की मदद से संभव हो चुका है, निधि जी को हार्दिक धन्यवाद

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