मेरा पिछला लेख हिन्दी के बकवास धारावाहिकों पर था, परन्तु मैं आज आपको मेरे मनपसन्द कार्यक्रम के बारे में बताना चाहता हूँ। ऐसा नहीं है कि टीवी पर एकता कपूर के सास- बहू और षड़यंत्र ब्राण्ड और जिन चुटकुलों पर कमर में गुदगुदी करके भी हँसी नहीं आती उन पर सिद्धू हँस हँस कर लोटपोट होते हों( कई बार तो प्रतियोगी के ” नमस्ते सिद्धू जी ” बोलने पर ही सिद्धूजी हँसने लगते हैं) इस तरह के ही कार्यक्रम आते हों, कई बहुत ही अच्छे कार्यक्रम भी आते हैं।
मेरा पसन्दीदा कार्यक्रम की लिस्ट में दो तो डिस्कवरी चैनल के कार्यक्रम हैं, पहला तो है आई शुडन्ट बी अलाईव (हिन्दी में) I Shouldn’t Be Alive इस कार्यक्रम में साहसिकों के द्वारा मुसीबत में फ़ँसने और बचने की घटना का पूरा नाटकीय रूपान्तरण बताया जाता है और साथ ही उन साहसिकों का साक्षात्कार भी बीच बीच में बताया जाता है।
एक अंक में कहानी कुछ यूं थी एक कबीले की खोज में चार साहसिक अपने घर से निकलते हैं और जंगल में भटक जाते हैं। बाद में उन में झगड़ा होता है और दो नदी मार्ग से जाने की जिद करते हैं और दो थल मार्ग से। उस कार्यक्रम में जल मार्ग से आगे बढ़ने वाले साहसिकों पर पड़ने वाली मुसीबतों को बताया गया था कि कैसे वे दोनो भी अलग पड़ जाते हैं। लगभग 7-8 दिन तक भूखे प्यासे और लगभग मरणासन्न अवस्था में भटकने के बाद वे दोनों तो आपस में मिल जाते हैं परन्तु थल मार्ग पसन्द करने वाले नहीं बच पाते।
कल रात को बताये अंक में एक वन विशेषज्ञ पायलट का छोटा विमान अफ़्रीका के जंगल में टूट जाता है, और उनके दोनो पाँव की हड्डियाँ टूट जाती है और बुरी तरह से घायल हो जाते हैं कि चलना तो ठीक करवट भी नहीं बदल सकते। पूरी रात कैसे उन्हें उस भयानक जंगल में गुजारनी पड़ती है बताया गया था। एक बार तो अफ्रीकन शेर उनको शिकार करने वाला ही होता है कि वे लगभग अपाहिज हालत में अपने दिमाग से शेर से बचते पाते हैं और दूसरी बार लकड़बग्घे से। इतना रोमांचक कार्यक्रम थे वह कि उस को यहाँ लिखने से अनुभव नहीं किया जा सकता बस देखना होता है। एक अंक में कुछ साहसिक कम्बोडिया के जंगलों में ख्मैर रूज के सैनिकों के हाथों पड़ जाते हैं और बड़ी मुश्किल से बच कर बाहर निकलते हैं।
मेरा दूसरा पसंदीदा कार्यक्रम है (हनी वी आर किलिंग दी किड्स) Honey we are killing the kids यह कार्यक्रम बच्चों के मोटापे और उनकी आदतों पर आधारित है। इस कार्यक्रम में बच्चों की मोटापे की परेशानी से गुजर रहे किसी परिवार को स्टूडियो में बुलाया जाता है, और सूत्रधार डॉ लिजा हार्क उनसे बच्चों की आदतों और खानपान के बारे में जानने के बाद कम्पयूटर की विशालकाय स्क्रीन पर बताती है कि बच्चे बीस साल से लेकर चालीस तक के होने पर कैसे कैसे दिखेंगे। यह बहुत डरावना अनुभव होता है माता पिता के लिये।
फिर शुरू होता है डॉ लिजा का उपचार जिसमें पहले हफ्ते खाने पीने की आदतों को सुधारने पर ध्यान दिया जाता है, फिर सोने- उठने के समय से लेकर खेलने तक पर ध्यान दिया जाता है। टीवी पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है और यहाँ तक की माता पिता की जिम्मेदारियाँ तक बदल दी जाती है, अगर बच्चे पिता के ज्यादा निकट है और उनके अनुशाषन में है तो अब घर की पूरी जिम्मेदारी माँ को दी जाती है। जिससे कई बार बच्चे तो बच्चे , माता- पिता भी नियम तोड़ देते हैं। एक बात का खास ध्यान दिया जाता है कि घर के सारे सदस्य एक साथ बैठ खाना खायें। जिससे आपस में अपनत्व बढ़े।
दो -तीन हफ्तों के बाद उन्हें फिर से स्क्रीन पर दिखाया जाता है कि बच्चे अब कैसे दिखेंगे और उस के हिसाब से आगे का कार्यक्रम निर्धारित किया जाता है। आखिरकार डॉ लिजा का उपचार पूरा होता है और अब एक बार फिर से बच्चों को स्क्रीन पर बताया जाता है कि अब बच्चे चालीस की उम्र के होने पर कैसे दिखेंगे। परिणाम बहुत ही आश्चर्य जनक होते हैं। अगर समय मिले तो एक बार इस कार्यक्रम को जरूर देखें।
मेरा तीसरा पसंदीदा कार्यक्रम स्टार प्लस पर आ रहा धारावाहिक “एक चाबी है पड़ौस में ” है। एक छोटे कस्बे के मोहल्ले कर्नल गंज में कुछ परिवारों की कहानी है। इस मोहल्ले में कुछ मध्यम वर्गीय परिवार रहते हैं। जिनमें एक मुस्लिम है,गुजराती उर्मी है ,बंगाली है ,पंजाबी भी है। सारे लोग मिल जुल कर रहते हैं, नाकारा बच्चे भी हैं जो दिन भर कैरम खेलते रहते हैं पर उनमें अटूट दोस्ती है। कभी कभार आपस में ढ़िशूम – ढ़िशूम भी कर लेते हैं। सबसे आकर्षक है वरूण बडोला। कुल मिला कर एक सामान्य कहानी जिसमें कहीं कोई षड़्यन्त्र नहीं करते, करोड़ों की बातें नहीं होती। उपर जो लिंक दिया है उसमें उर्मी (पात्र का नाम है, अभिनेत्री का नाम याद नहीं) और वरूण भी दिख रहे हैं। जो एक दूसरे से प्रेम करते हैं पर इजहार नहीं कर पाते।
जब दूरदर्शन नया नया आया था तब इस तरह के कई धारावाहिक आते थे, अब वो बात कई बरसों के बाद एक चाबी…. ने कर दिखाई है। आम आदमी की कहानी होने की वजह से यह धारावाहिक देखते समय ऐसा महसूस होता है कि मानों हम भी इस कहानी का एक हिस्सा हों। इस कार्यक्रम को आप नहीं देखा तो आपने बहुत कुछ “मिस” कर दिया है।इस शनिवार को मत भूलें। बहुत ही सुन्दर धारावाहिक है यह।
(जारी…)