श्रीमतीजी गर्मी की छुट्टियां मनाने गाँव गई है बच्चों को साथ लेकर! दो साल बाद गई है सो कह कर गई है कि डेढ़ महीने से पहले नहीं आने वाली, इधर अपनी हालत यहां पतली होती जा रही है।
जब निर्मला यहां थी, और मैं किसी काम से घर जाता; किसी भी समय तो वे या तो रसोई में कुछ काम कर रही होती या बर्तन मांज रही होती या फिर और कोई काम कर रही होती। कभी फुर्सत से पढ़ते लिखते या कम से कम टीवी देखते भी नहीं पाया।
मैं रोज उन पर चिढ़ जाता था।
पता नहीं जब देखो काम काम, हमेशा किचेन में या बाथरूम में घुसी रहती हो, काम है कितना बस खाना बनाना, कपड़े धोना, पोछा लगाना घर की साफ सफाई रखना…और, और, और। पता नहीं कितना धीरे धीरे काम करती हो। बस इतने से काम को करने के लिये तुम्हारे लिये समय कम पड़ता है!
पर अब जब वे यहां नहीं है तो पता चलता है कि कितना मुश्किल होता है, सुबह छ: साढ़े छ: उठ कर घर का काम शुरु करता हूं। पर काम है कि पूरा होता ही नहीं।
खाना बनाना सीखने के लिये घर के सब लोग दबाव डालते थे तब कहता था इसमें सीखना क्या? बस आटा गूंदो और रोटी बेल कर सेको। सब्जी तो यूं यूं बन जाती है।
यह जितना आसान लगता था आज जब आन पड़ी है तो उतना ही मुश्किल। आटा गूंदना कोई आसान काम नहीं दस दिन में चार बार तो आटे में पानी ज्यादा पड़ गया और उसे बराबर करने के लिये दो समय के खाने जितना आटा हो गया। एक बार आटा इतना कड़क हो गया मानो रोटियांनहीं पापड़ बनाने हों।
इधर जब रोटी बेलता हूं तो तवे की रोटी जल जाती है, तवे की रोटी को संभालता हूं तो दूसरे गैस पर रखी सब्जी बढिया सी नये रंग की बन जाती है, ये रंग मेरे चेहरे से थोड़ा ही हल्का होता है, कभी तो मेरे चेहरे के रंग को मात देती सब्जियां भी बन जाती है।
एक काम करता हूं तो दूसरा रह जाता है, कभी रोटी कच्ची रह जाती है तो कभी नई रोटी बेल नहीं पाता और तवा खूब गरम हो जाता है नई रोटी डाली नहीं कि तवे से चिपकी नहीं।
चलो जैसे तेसे खाना बन गया है, अरे अभी तो तीन दिनों के कपड़े धोने है, और आठ बजने आई। मन कहता है क्या करूं कपड़े कल धोंऊं? लेकिन कल फिर चार जोड़ी हो जायेंगे, चार जोड़ी धोते धोते तो कमर टूट जायेगी।और फिर कल खाने का क्या होगा? मन मसोस कर एक जोड़ी कपड़े धोता हूं। अरे आज तो झाड़ू भी नहीं लगा, पोछा तो दस दिन में एक बार लगा! है भगवान क्या क्या करूं? अभी तो खाना बनाया उसके बरतन भी मांजने हैं। चलो जाने दो सब काम छोड़ देता हूं, कल खाना होटल में खा लूंगा। दुकान खोलने में ज्यादा देर हुई तो ग्राहक चिढ़ेंगे।
कितना आसान है ना पत्नियों पर चिढ़ना। है ना ?
🙂
यह पोस्ट लिखने के बाद आज सुबह बनाई हुई तुरई की सब्जी खाने बैठा तो पता चला कि नमक दोनो ( शायद दो दिनों के) समय की सब्जी का तुरई की सब्जी में ही डाल दिया है, भला हो कि रात को दही जमा दिया था सो उससे खाना का लिया गया। वरना दौ कौर खाने के बाद तो जीभ पर नमक की वजह से छाले पड़ गये हैं।