॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

आओ सचिन को गरियायें

Posted by सागर नाहर पर 4, अप्रैल 2007

ईस्वामी जी के इस लेख पर टिप्पणी करने की कोशिश की तो लगा की कुछ ज्यादा लम्बी हो रही है तो  सोचा कि इसे अपने चिट्ठे पर ही लिख देते हैं।
ईस्वामीजी ने पुराने चावलो का जिक्र किया,  उन पुराने चावलों  ने  पता नहीं कौनसे खेत खोद दिए और चले हैं कहने को सचिन अब बस हुआ!!! और  इयान चैपल उन्हें भी कोई हक नहीं कि हमारे खिलाड़ियों को सन्यास लेने की सलाह दे। इयान चैपल  सिर्फ हमारी टीम कोच चैपल के भाई होने से हमारे खिलाड़ियों को बिन मांगी सलाह देने या उनके बारे में कुछ कहने के अधिकारी नहीं हो जाते!!! इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल एथर्टन ने कहा कि “सचिन अब हीरो नहीं बल्कि कॉमिक हीरो हैं।” तब भी हमने (BCCI ने) विरोध नहीं क्या ना ही एथर्टन को यह कहने की हिम्मत दिखाई कि भाई तुम पहले अपना घर संभालो। सचिन जैसा भी इस देश का सम्मान है, आज बुरे दिन आये तो उनका साथ देने की बजाय हम उसे कोस रहे हैं।

अभी कुछ दिनों पहले ही सुनने में आया कि कुछ वर्षों पहले संदीप पाटिल को भारतीय टीम का कोच बनाया जाना लगभग तय हो चुका था तब इन्हीं पुराने चावलों ने  जबरदस्त विरोध किया और संदीप पाटिल को कोच नहीं बनने दिया गया, रातों रात मदन लाल के नसीब  से छींका टूटा और भारतीय टीम के कोच बन गये। संदीप पाटिल बाद में केन्या के कोच बने और टीम को २००३ के विश्व कप में सेमी फाइनल तक ले गये।

जिस बंग्लादेश से भारत के हार जाने पर क्रिकेट प्रशंषकों ने धोनी के निर्माणधीन घर पर जाकर तोड़फोड़ की  उसी बंग्लादेश ने  विश्व विजेता आस्ट्रेलिया को २००५ में बुरी तरह से हराया है। तब आस्ट्रेलिया के प्रंशषकों ने रिकी पोंटिग या शेन वॉर्न के घर पर तोड़फोड़ नहीं की और ना ही उनके पोस्टर- पुतले जलाये होंगे। हमें हार का दुख: होता है तो मान सकते हैं पर जीतने वालों की भी सराहना करने में हमें संकोच क्योंकर होना चाहिये?

एक मैच में हम बंग्लादेश से हारते हैं तो खिलाड़ियों के घर तोड़फोड़ करते हैं और अगले मैच में बरमूडा जैसी कमजोर टीम से जीत जाने पर उन्हीं खिलाड़ियों को माला पहनाते हैं, रातों रात सहवाग के फैन क्लब बना लेते हैं, फिर श्रीलंका से हारने पर हम दुखी हो जाते हैं, यह सब क्या है? रातों रात हमारी आस्थायें, निष्ठायें और विश्वास कैसे बदल जाते हैं।

मैं यह नहीं कहता कि भारत का हारना अच्छी बात है पर क्रिकेट खेल है उसे खेल भावना से ही लेना चाहिये। विश्व कप से बाहर होने को हम राष्ट्रीय शोक  मना रहे हैं, जिन लोगों को क्रिकेट का क भी नहीं पता और बल्ला पकड़ना भी नहीं आता  वे भी कह रहे हैं कि सचिन को सन्यास ले लेना चाहिये।

कहते हैं कि बुरे समय में तो परछाई भी साथ छोड़ देती है तो देशवासियों का क्या दोष? जब तक हममें खेल को खेल की तरह देखने की नजर पैदा नहीं होती और क्रिकेट के अलावा हम अन्य खेलों पर ध्यान नहीं देंगे तब तक यही होता रहेगा।
ईस्वामीजी ने शेरों की बात की तो याद आया राजस्थान के गाँवों और कबीलों में आज प्रतिदिन १० के हिसाब से महीने के ३००-३५० मोरों की हत्याएं उनके मांस और पंखों के लिये की जा रही है, है किसी को  चिन्ता या किसी को इस बात का पता ????  नहीं ना!!
क्या फरक पड़ता है मोर के मरने से, जो हमारा राष्ट्रीय पक्षी है। राष्ट्रीय पशु- पक्षी और खेल के अलावा हरेक राष्ट्रीय गतिविधियों में हम पिछड़ रहे हैं, उसकी हमें चिन्ता नही; चिन्ता है तो बस हम विश्व कप से बाहर हो गये उसकी।

11 Responses to “आओ सचिन को गरियायें”

  1. eswami said

    कोई और देश होता तो मात्र वन्यसंपदा के आधार पर ही पर्यटन केन्द्र बन चुकता. हमारी गलत प्राथमिकताएं शर्मनाक हैं.

  2. सचिन को गाली देने का एक फ़ैशन बन चुका है… तमाम चैनल इसीलिये गरिया रहे हैं ताकि उनकी TRP बनी रहे और TRP बनेगी सचिन पर प्रोग्राम बनाने से… कोई यह नहीं बता रहा है कि यदि सचिन मैच विनर नहीं हैं तो फ़िर उन्हें 53 “मैन ऑफ़ द मैच” कैसे मिल गये ? और सिर्फ़ एक वाक्य उन सभी सचिन विरोधियों के लिये कि – “यदि हाथी बैठ भी जाये तो भी वह गधे से ऊँचा ही रहता है” – पहले सचिन का विकल्प ढूँढ कर लाओ, फ़िर बात करो… लेकिन हमारे यहाँ तो पल में हीरो और पल में जीरो बनाने का खेल चलता रहता है… और यह सारी फ़फ़ूँद फ़ैलाई है दिन-रात चलने वाले चैनलों ने और कुछ बयानबाज पूर्व क्रिकेट खिलाडियों ने, जिन्होंने अपने कैरियर में तो कुछ नहीं किया, अब सचिन को सिखाने निकले हैं…

  3. बहूत अच्छा लिखा है भईया… आपसे पुर्णतः सहमत हूँ 🙂

  4. सचिन को गरियाने का तो ऐसा है कि हम इस बुढे शेर को विश्वकप के पहले भी गरियाते थे ! और आज भी गरियाते है।
    इस कागजी शेर और व्यक्तिगत रिकार्डो के लिये खेलने वाले खिलाड़ी को तीन साल पहले सन्यास लेना चाहिये था। जब भी टीम को जरूरत रही है, इस महान खिलाड़ी ने अच्छा प्रदर्शन नही किया है। यकिन नही हो तो रिकार्डो को टटोल लो !
    बरमुडा जैसी टीम के सामने ५० बनाने वाले की दूर्गत कोई भी ऐरा गैरा गेंदबाज कर जाता है। ये महानायक अब विपक्षी गेंदबाजो को नायक बना रहा है।
    रहा सवाल क्रिकेट के पीछे लोगो के पागलपन का उसके लिये क्या कहें ! इस देश को आलसीयो के खेल जैसे क्रिकेट ही पसंद आते है। इंगलैड के भूतपुर्व गुलाम देशो के इस खेल को आज भी अंग्रेजो के मानसिक गुलाम लोग पसंद करते है।
    बाकि दूनिया जाये भाड़ मे……. क्या फर्क पड़्ता है ……

  5. वैसे एक बताऊँ भाईसा,

    हम लोग अति भावुक हैं.. कोई हमारे लिए हिरो से जीरो और जीरो से हीरो दो सेकंड मे हो सकता है.

    सचीन को मै महान बल्लेबाज नही मानता. वैसे भी याद किजीए सचीन ने कितने मैच भारत को जीताए हैं.. सचीन मेच विनर तो नही ही है. हाँ पोंटिंग और लारा जैसे बल्लेबाज जरूर हैं.

    लेकिन सचीन दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजो मे से एक है और उनके रिकोर्ड इसका सबूत है.

    लोगो को सचीन को मुफ्त की सलाह देने से बचना चाहिए.. सचीन को पता है उन्हे क्या करना है. यदि सम्मान पूर्वक सन्यास ले लेंगे समय रहते तो ईज्जत बढ जाएगी, नही तो क्रिकेट बाकि है अभी यह तो कपिल देव भी कहते रहे थे…

    खैर यह सचीन की मर्जी, वो कोमिक हीरो बने, बिस्कुट और बूस्ट पीएँ.. पर उनको भी पता है कि उनकी उम्र हो रही है अब..

  6. सही कह रहे हैं आप, किन्तु क्या किसी न किसी को गरियाना आवश्यक है? अपनी गिरेबान में झाँक कर हम यह तो देख सकते हैं कि हम अपने अपने काम कितनी निष्ठा से कर रहे हैं।
    घुघूती बासूती

  7. नीरज दीवान said

    पूर्णतया असहमत. क्रिकेटिया विश्लेषण के उपरांत ही कहा जा सकता है कि सचिन क्या है. चाहें तो क्रिकइन्फों जाकर किसी भी खिलाड़ी से तुलना करें या चिपलूनकर जी का दिया एक ही तथ्य पर गौर कर फरमाएं. बहरहाल, बहस तो जारी है किंतु सचिन मेरे लिए महान क्रिकेटर हैं थे और रहेंगे .. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि इन दिनों टीम की लुटिया डूब गई. व्यक्तिगत तौर पर सचिन बेहतरीन इंसान भी है. उनमें गुरूर, अहम, वरिष्ठता का दंभ या कप्तान न होने का रंज कभी नहीं रहा.
    पूरा इंटरव्यू पढ़े और बताएं कि ग़लत क्या है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया के आज के अंक में यह प्रकाशित हुआ है.

  8. नीरज शर्मा said

    वाह सागर जी, ठीक लिखा है, पहले इतना सर पर बिठाते ही क्‍यों हो जो बाद में गरियाना पडे, हमने सिर्फ क्रिकेट को ही हमारा धर्म मान लिया है जैसे इस देश में और कोई खेल बचा ही नहीं हैं, ना ही कोई रचनात्‍मक सोच बची है, पागलों की तरह दिनभर टीवी के सामने बैठ क्रिकेट मैच देखने मात्र से देश की समस्‍यायें हल नहीं हो जायेगी।

  9. दीपक said

    नीरज भाई, आप अंधविश्वास की चपेट मे आ गए हो. आज विश्लेषण विग्यापन यह बताता है कि क्रिकेट पर अरबों रुपये लगे है, अगर जनता excise मे छूट के लिये बात कर सकती है तो ऊन्हे गाली देने का भी हक रखती है.
    सागर भाई, आपने क्रिकेट को खेल भावना से देखने की सलाह दी है और साथ मे दूसरे देशों के साथ तुलना भी की है.. अगर आपको पता नही तो बता दूं, अपने देश मे क्रिकेट की वजह से बहुत कुछ प्रभावित होते हैं जो कि दूसरे देशों मे नही होता. वहां की सरकारें २ एकड जमीन नही देती शतक लगाने पर.
    अत: हमे उन्हे सलाह देने का पूरा हक है, अगर आप सम्भाल नही सकते तो और १०० करोड ८५ लाख बाकी है. ऐसा नही है कि सचिन से पहले क्रिकेट नही था…

  10. बहुत सटीक लिखा है आपने । मुझे सुरेश बाबू की टिप्पणी “यदि हाथी बैठ भी जाये तो भी वह गधे से ऊँचा ही रहता है” बहुत अच्छी लगी । सचिन ने जो कुछ अपने कैरियर में करके दिखाया है, धोनी जैसे खिलाड़ी सिर्फ उसका सपना देख सकते हैं । देश की टीम के लिये क्या क्या नहीं किया है उसने और आज हमने कितनी आसानी से मुँह फेर लिया ।

  11. सागरजी,
    एक सार्थक लेख लिखने के लिये साधुवाद स्वीकार करें । सच तो ये है कि क्रिकेट का ये बुखार जानबूझ कर फ़ैलाया गया है । टी.वी. पर दिखाये जाने के लालच में हर कोई समीक्षक बन जाता है और जो जितना जोर से चिल्ला सके वो उतना ही अच्छा ।

    तर्क का साथ तो हमने तब ही छोड दिया था जब क्रिकेट को एक धर्म का नाम दिया था । अब धर्म बना ही दिया है तो उसके साइड इफ़ेक्ट्स तो झेलने ही पडेंगे ।

    आपका स्वास्थ्य अब कैसा है ? घर पर आराम कीजिये और दाल-बाटी खाइये, हम लोगों की शुभकामनायें तो आपके साथ हैं ही, देखिये आप कैसे झट से चंगे होते हैं 🙂

    साभार,
    नीरज

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