चिठ्ठा चर्चा में एक बेहूदा मजाक
Posted by सागर नाहर पर 14, जनवरी 2007
जो चिट्ठा जगत के वरिष्ठ चर्चाकार ने कल मेरे साथ किया है। वह देखिये
गाँधी पर बहस बढ़ी जा रही है। पहले अनूप ने सृजन शिल्पी को छेड़ दिया, उसके बाद सागर के बाबा रामदेव द्वारा कवि प्रदीप को चापलूस पुकारने के वक्तव्य का समर्थन करने पर ऐसी खबर ली कि वे बीमार ही पड़ गये। अब अगला जवाबी चिट्ठा किसका होगा इंतज़ार रहेगा। चिट्ठा चर्चा दिनांक 13जनवरी 2007
गांधीजी पर चल रही बहस में मैने स्वामी रामदेव की इस बात का समर्थन किया कि आजादी के संघर्ष में सिर्फ बापू के योगदान कहना उन शहीदों का अपमान होगा जिन्होने अनाम रह कर या किसी भी तरह से अपने प्राण न्यौच्छावर किये। इस पर बहस बढ़ती गयी और अनूप शुक्ला जी ने कुछ लिखा जिस पर मैने फिर से टिप्पणी की जिसका एक बा फिर से अनूप जी ने जवाब दिया अब चूंकि मैं तकनीकी कारणों से फ़ुरसतियाजी की साईट नहीं खोल पा रहा हूँ सो मैने अपने चिठ्ठे पर टिप्पणी दी और उसमें साफ लिखा है कि
जी यह गल्ती तो मुझ से हुई है इसके लिये में क्षमाप्रार्थी हूँ जब लेख लिखा था तब इसका जिक्र करना था जो आवेश में मैं भूल गया था, पर इसका अर्थ यह नहीं कि मैं बाबा रामदेव जी की इस बात से भी सहमत हूँ कि पं प्रदीप चापलूस थे। मैं ना तो स्वामी रामदेव जी का भक्त हूँ ना ही गांधीजी का। जिस तरह गांधीजी के बारे में लिखा एक ना एक दिन स्वामी रामदेव के बारे में भी लिखूंगा।
अब आदरणीय चिठ्ठाकार को वह टिप्पणी भी दिखाते हैं जिसमें आप यह कहते हैं कि मैने यह लिखा कि मैने स्वामी रामदेव का पं प्रदीप को चापलूस कहे जाने का समर्थन किया
भाई साहब
हर बार की भाँति शानदार तरीके से आपने अपने विचारों को रखा। साधूवाद
आलोचानाओं से जब तक गांधीजी जिन्दा रहे तब तक उन्हें भी कभी इतना बुरा नहीं लगा और ना ही कभी उन्होने अपनी आलोचनाओं को मौसमी और टटपूंजिया आलोचना कहा। स्वामी रामदेव की पीठ हमने इस बात पर नहीं ठोकी थी कि उन्होने कवि प्रदीप को चापलूस कहा, मैं खुद कवि प्रदीप का प्रशंषक हूँ। मैने पीठ इस बात पर ठोकी थी कि उन्होने एक ऐसा सच कहा जिसे कहने मे लोग डरते हैं कि आजादी की लड़ाई में सिर्फ़ गांधीजी के योगदान की बात करना दूसरे शहीदों के प्रति अन्याय होगा। हम हर बात को सिर्फ़ गांधी, गांधीवाद और गांधीगिरी से क्यूं तौलते हैं? और भी कई लोग है जिन्होने बिना अटपटे और सिरफ़िरे प्रयोग किये भी आजादी में अपना योगदान दिया और कई तो अनाम भी रहे?
अगर गाधीजी सिर्फ़ अहिंसा के हिमायती होने के कारण भगत सिंह को नहीं बचा रहे थे उनका यह सिद्धान्त व्यर्थ गया। क्यों कि अहिंसा यह नहीं कहती कि आप अपने सिद्धान्तों की वजह से किसी की जान मत बचाओ जब कि उसकी जान बचाने में आप समर्थ हों।
एक बात एक बार फिर से पूछना चाहूंगा कि क्या देश भक्ति का मतलब सिर्फ़ गांधी के विचारों से सहमत होना है? जो उनके विचारों का विरोध करे वह देश भक्त नहीं या उसके मन में देश के प्रति प्रेम नहीं? (फ़ुरसतिया)
और रही बात खबर लेने की तो इस बारे में शुक्ला जी क्या कहते हैं यह भी देखिये
भैये, हम लेख लिखे थे कोई डांट-फटकार नहीं!इसी बहाने तमाम टाइपिंग हो गयी।….गांधीजी के बारे में और कुछ कहना ठीक नहीं है। प्रदीप के बारे में उलाहने की ऐसी कोई बात नहीं। मुझे मजा भी आया कि ‘बच्चू’ से ये बात छूट गयी जिसकी मौज ली जा सकती है। अक्सर ऐसा होता है कि जब हम एक बात को खास मानकर उसके बारे में सोचते-लिखते हैं तो इस चक्कर में तमाम बातें छूट जाती हैं जो शायद उतनी ही जरूरी होती हैं।
और बीमार पड़ गये एक मजाक था जिसे आप समझ नहीं पाये देखिये समीर लाल जी और अमित जी क्या कहते हैं
वैसे भी ना तो अब गांधीजी जीवित है ना ही भगत सिंह और आजकल मेरी भी तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही है।
–क्या पंच लाईन दी है. हँसते हँसते हालत खराब हो गई. तबियत का ध्यान रखिये, यहाँ हम संभाले हैं. बाकी तो और सब हइये हैं… (समीर लाल जी )
अब किसी दवा कंपनी के विज्ञापन में ऐसा कहते तो आपका सहकर्मी/शुभचिंतक आपसे कहता, “तो कुछ लेते क्यों नहीं”। हम भी आपके शुभचिंतक हैं इसलिए ऐसा कह रहे हैं, स्वास्थ्य लाभ कीजिए(हिमालय/पहाड़ पर जाकर भी कर सकते हैं)। बाकी इस विषय में आपकी और मेरी सोच काफ़ी मिलती सी प्रतीत होती है। (अमित जी )
अब सब कुछ आपके सामने प्रस्तुत है कृपया आदरणीय चिठ्ठाकार इन चिठ्ठों और टिप्प्णीयों को चार पढ़ें और बतायें कि मैने कहाँ पं प्रदीप को चापलूस कहे जाने का समर्थन किया है? अगर आप यह नहीं बता सकते तो कृपया ऐसा बेहूदा मजाक किसी और के साथ कभी ना करें।
एक बात और सब ने कहा कि इन प्रसिद्ध गांधीवादी को पढ़ो या उन को पढ़ो चलिये एक बार आप जरा इसको भी पढ़िये।
debashish said
बेहतरीन! मज़ाक मैं नहीं समझ पाया या आप? वैसे इस चिट्ठे का टैग ग़लत है, “सामान्य” की जगह “बवाल” या “तिल का ताड़” होना चाहिये 😉
सागर चन्द नाहर said
महोदय अगर मैं आपके मजाक को समझा नहीं होता तो शीर्षक में “बेहूदा” शब्द ना लिखता पर मजाक अलग बात है और झूठ अलग। आपने जो लिखा है उसमें बिल्कुल सचाई नहीं है।
मजाक में किसी की भावनाओं के साथ इस तरह खिलवाड करना क्या सही है?
आप बताइये कि क्या मैने ऐसा कहा था?
ऐसा झूठा मजाक किस काम का जिससे मेरे मित्र और पाठक मुझे गालियाँ देने लगे कि मैं पं प्रदीप को चापलूस कैसे मानता हूँ?
तिल का ताड़ या बवाल आपके ही आशीर्वाद से हुआ है, बाकी मैने तो कहीं ऐसा नहीं कहा कि बाबा रामदेव इस बात पर सही थे।
Neeraj Sharmaa said
किसी किसी को विवादों में बने रहने का शौक होता है, अब कृपया बतायें कि चिट्ठा जगत में किसे शौक है, विवादों से शौहरत पाने का, वैसे रामदेव जी भी योग को व्यावसायिक प्रोडक्ट की तरह ही बेच रहें है। यह बार भी सही है कि गाँधीजी के अलावा भी कई नामी और अनामी शहीदों का योगदान काफी रहा था।
सृजन शिल्पी said
नाहर जी, यह सच है कि आपने कवि प्रदीप को चापलूस पुकारने के वक्तव्य का समर्थन नहीं किया था। देबू दा ने चिट्ठों की चर्चा करते समय गाँधी पर हो रही बहस में भाग ले रहे चिट्ठाकारों की बातों को एक वाक्य में जोड़ने की कोशिश करते समय असावधानीवश ऐसा लिख दिया होगा। इसे इतनी गंभीरता से नहीं लें और भूल जाएँ।
गाँधी पर बहस तो तब तक चलती रहेगी जब तक इतिहास रहेगा और सभ्यता रहेगी। लेकिन उस बहस पर चर्चा करते-करते हमलोगों का इस तरह भटक कर व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप पर उतर आना अच्छा नहीं है।
अनूप शुक्ला said
अरे भाई, ये क्या लफ़ड़ा ! देबाशीष ने जो लिखा उसका इतना बुरा मत मानो! ऐसा हो जाता है। अपना खून मत जलाओ! इस बात का मुझे अफसोस है कि हमारी पोस्ट के चक्कर में ये कहानी हो गयी। अब इसे आगे मत बढ़ाऒ। गांधीजी का नाम लेकर इसे यहीं खतम कर दो और अगली पोस्ट लिखो!
Amit said
नीरज बाबू ज़रा संभल के, इस बात से पुनः एक नई खामखा की बहस आरंभ हो सकती है!! 😉
( अब यह न समझिएगा कि मैं स्वामी रामदेव का भक्त हूँ और इस बहस को आरम्भ करूँगा!! 😉 )
सागर चन्द नाहर said
अब यह चर्चा समाप्त होती है, मैं जानता हूँ कि देबूदा के मन में मेरे प्रति स्नेह है पर। कभी कभार स्नेह ज्यादा उड़ल जाया करता है। सो उडल गया खैर जो हुआ सो हुआ ।
अब मित्रों से अनुरोध है कि इस बात को यहीं समाप्त समझें।
फुरसतिया » आग का दरिया, बसंती की अम्मा और कुछ हायकू said
[…] खैर हमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। सागर भाई भी नेट पर अपने नाम के आगे अपने गुस्से का इजहार करता बोर्ड लगाये थे- बेहूदा मजाक! […]
PRAMENDRA PRATAP SINGH said
गुरु दक्शिणा की टिप्पड़ी
संजय बेंगाणी said
हम जरा दुसरे कामो में व्यस्त हो गए थे, वरना इस यज्ञ में हम भी आहुति देते. पर बहस तो समाप्त हो गई 😦
narayan said
गांधीजी वाकई में एक महान इन्सान थे इस बात में कोई शक नहीं हे, पर काफी सारे गुमनाम शख्स भी थे जिन्होने देश की आजादी की खातिर अपने जीवन की कुर्बानी दी थी । वेसे आजकल आजादी के मायने काफी बदल गए है ,, भई सबकी अपनी अपनी सोच है ।
लेख काफी रोचक था, जिसने अन्दर तक झकजोर दिया ।
venkat said
very good