॥दस्तक॥

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

एक्शन रिप्ले..

Posted by सागर नाहर पर 9, जुलाई 2011

पिछली पोस्ट  में आपने ऐषा दादावाला की कविताएं पढ़ी। उन कविताओं ने कईयों को रुला दिया। कुछ लोगों ने मेल, और चैट में बताया कि कविता पढ़ने के बाद वे रो पड़े। मैं आज  ऐषा की एक और कविता का अनुवाद आपके लिए  पोस्ट  कर रहा हूँ। आशा करता हूँ कि पिछली पोस्ट की तरह यह कविता भी आपको बहुत पसन्द आएगी।

एक्शन रिप्ले-

आज
घर-घर के खेल में
वह पापा बना!
और सचमुच के पापा जैसे
मम्मी की तरफ
आँखों को लाल कर देखा
मम्मी हर बार की तरह
धीमी आवाज़ में बोली
“कम से कम बच्चों की मौजूदगी में तो….”
और फिर पापा की  आवाज़
रोज से और तेज हो गई
और फिर
थोड़ी बहस- थोड़ी……
मम्मी की सिसकियाँ
और फिर
ठीक उसी दिन की तरह
पापा के आँखों की  लाल लकीरें
मम्मी के गाल पर बन आई…!
और पापा बने बच्चे ने
कोने में पड़े,
खिलौने के बर्तनों के ढ़ेर को
जम  कर लात लगाई
और घर से बाहर निकल गया
और दुपट्टे से बनी, साड़ी में लिपटी,
मम्मी बनी बच्ची
अपनी मम्मी की ही तरह
अपने बिखरे बालों और
बिखरे घर को समेटने में जुट गई

मूल कविता:  एषा दादा वाला એક્શ્‍ન રિપ્લે…
गुजराती से हिन्दी में अनुवाद: सागर चन्द नाहर

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कुछ कविताएं रुला देती है

Posted by सागर नाहर पर 22, जून 2011

पिछले दिनों फादर्स डे पर फेसबुक में नीरज दीवान ने अपने स्टेट्स पर लिखा

…….बुज़ुर्गों का साया भी सुरक्षा कवच जैसा होता है..लगता है कि “हां..कोई है अपने साथ”-उनका दुनिया में रहना ही संबल देता है। जाने पर आप एकाएक अकेले हो जाते हैं..अब कुछ ऐसा ही है। पिता पर कोई गीत?

तो नेट पर खोजने पर कुछ अच्छे हिन्दी गीत और कविताएं मिली , लेकिन फिर पता नहीं क्या सूझा कि गुजराती में खोजने लगा, तो अनायास ही कुछ ऐसी कविताएं मिल गई, जिन्हें पढ़ कर आँख से आँसू छलक गए। बार- बार पढ़ी। फिर इच्छा हुई  कि इनका हिन्दी अनुवाद कर हिन्दी के पाठकों को भी पढ़वाते हैं। मैने फेसबुक  पर कवियत्री से अनुमति लेकर उनका हिन्दी अनुवाद किया।

ये कविता सुरत की युवा कवियत्री एषा दादा वाला ने लिखी है। इतनी कम उम्र में ऐषा ने कई गंभीर कविताएं लिखी है।

किसी प्रादेशिक भाषा से हिन्दी में अनुवाद इतना आसान नहीं होता। कई शब्द ऐसे होते हैं जिनको हम  समझ सकते हैं लेकिन उनका दूसरी भाषा उनके उचित शब्द खोजना मुश्किल होता है। मसलन गुजराती में एक शब्द  है “निसासो” यानि  एक हद तक हिन्दी में हम कह सकते हैं कि “ठंडी सी दु:खभरी साँस छोड़ना! लेकिन गुजराती में निसासो शब्द एक अलग भाव प्रस्तुत करता है।  जब कविता को अनुवाद करने की कोशिश की तो इस तरह के कई शब्दों पर आकर  अटका।

खैर मैने बहुत कोशिश की कि कविता का मूल भाव या अर्थ खोए बिना उसका सही अनुवाद कर सकूँ, अब कितना सफल हुआ यह आप पाठकों पर…

डेथ सर्टिफिकेट :
प्रिय बिटिया
तुम्हें याद होगा
जब तुम छोटी थी,
ताश खेलते समय
तुम  जीतती और मैं हमेशा हार जाता

कई बार जानबूझ कर भी!
जब तुम किसी प्रतियोगिता में जाती
अपने तमाम शील्ड्स और सर्टिफिकेट
मेरे हाथों में रख देती
तब मुझे तुम्हारे पिता होने का गर्व होता
मुझे लगता मानों मैं
दुनिया का सबसे सुखी पिता हूँ

तुम्हें अगर कोई दु:ख या तकलीफ थी
एक पिता होने के नाते ही सही,
मुझे कहना तो था
यों अचानक
अपने पिता को इतनी बुरी तरह से
हरा कर भी कोई खेल जीता जाता है कहीं?

तुम्हारे शील्ड्स और सर्टिफिकेट्स
मैने अब तक संभाल कर रखे हैं
अब क्या तुम्हारा “डेथ सर्टिफिकेट” भी

मुझे ही संभाल कर रखना होगा?

*****************

पगफेरा
बिटिया को अग्‍निदाह दिया,
और उससे पहले ईश्‍वर को,
दो हाथ जोड़ कर कहा,
सुसराल भेज रहा हौऊं,
इस तरह  बिटिया को,
विदा कर रहा हूँ,
ध्यान तो रखोगे  ना उसका?
और उसके बाद ही मुझमें,
अग्निदाह देने की  ताकत जन्मी
लगा कि ईश्‍वर ने भी मुझे अपना
समधी बनाना मंजूर कर लिया

और जब अग्निदाह देकर वापस घर आया
पत्‍नी ने आंगन में ही पानी रखा था
वहीं नहा कर भूल जाना होगा
बिटिया के नाम को

बिना बेटी के घर को दस दिन हुए
पत्नी की बार-बार छलकती  आँखें
बेटी के व्यवस्थित पड़े
ड्रेसिंग टेबल और वार्डरोब
पर घूमती है
मैं भी उन्हें देखता हूँ और
एक आह निकल जाती है

ईश्‍वर ! बेटी सौंपने से पहले
मुझे आपसे रिवाजों के बारे में
बात कर लेनी चाहिए थी
कन्या पक्ष के रिवाजों का
मान तो रखना चाहिए आपको
दस दिन हो गए
और हमारे यहाँ पगफेरे का  रिवाज है।

दोनों कविताएं *एषा दादावाला*
अनुवाद: सागर चन्द नाहर

कविता को अनुवाद करने  में कविताजी वर्मा का सहयोग रहा, उनका बहुत बहुत धन्यवाद।

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पलाश की चाय और दस्तक के पाँच साल

Posted by सागर नाहर पर 12, मार्च 2011

बीस फरवरी  को मेरी दो भांजियों के विवाह के लिए नागपुर जाना हुआ। विवाह में मम्मीजी के मामाजी ईश्वर लालजी श्रीमाल भी आए थे और यहीं मुलाकात हुई उनके मामाजी के सुपुत्र यानि मम्मीजी के मामाजी (मेरे नानाजी) और नागपुर निवासी डॉ शान्तिलाल जी कोठारी से।

डॉ शान्तिलालजी Academy of Nutrition Improvement के President हैं। समाज सेवा के साथ- साथ आप HIV/Aids के रोगियों के लिए भी बहुत काम करते हैं। बातों बातों में पता चला कि डॉ कोठारी की एक छोटी सी फेक्ट्री भी है जिसमें वे सोयाबीन का दूध बनाते हैं। नानाजी डॉ कोठारी ने हमें उनकी फेक्ट्री में आने का न्यौता दिया तो मैं , चाचाजी , मौसाजी और एक मित्र, चारों वर्धा रोड़ स्थित उनकी फेक्ट्री पर पहुँच गये। (/span>

नानाजी से बातें करते कई आश्चचर्यजनक बातें चली मसलन सोयाबीन को अगर उचित प्रोसेस के बिना आहार में शामिल किया जाये तो वह बहुत ही हानिकारक हो सकता है। एक सुप्रसिद्ध स्वास्थय पत्रिका में छपा एक लेख बताया जिसमें सोयाबीन को सीधे पीस पर उसका दूध बनाकर दही और पनीर बनाने कर उसका सेवन करने पर स्वास्थय लाभ होता है। डॉ कोठारी ने बताया कि उपरोक्त लेख को पढ़कर स्वास्थय पत्रिका को नोटिस भी दिया है कि या तो वे साबित करें कि इस तरह से सोयाबीन के सेवन से स्वास्थय लाभ होता है या फिर पाठकों को गलत जानकारी देने के लिए अगले अंक में क्षमा मांगे।

अचानक मेरी नजर टेबल पर रखे कुछ पैकेट्स पर पड़ी जिसमें सूखे फूलों की पंखुड़िया रखी थी। मैं उन्हें उठा कर देख रहा था जिस पर लिखा हुआ था पलाश की चाय! पलाश तो हमारे यहाँ बहुतायत होता है उसके सूखे फूल तो बोरियां भर कर मिल सकते हैं, हमारी बात का विषय अब पलाश और लाखोड़ी दाल पर आ गया। डॉ साहब से पता चला कि लाखोड़ी दाल भी बहुत लाभप्रद होती है लेकिन दुष्प्रचार की वजह से अब उसका सेवन बहुत कम हो गया है। महुआ के फूल भी बहुत लाभप्रद होते है लेकिन महुआ से शराब भी बनती है और इस वजह से हमने उसके गुणों को पहचानने की कोशिश ही नहीं की। हरी सब्जियों में तरोटा ( हिन्दी नाम पता नहीं) स्वास्थय के लिए पालक से भी ज्यादा लाभप्रद होता है।

डॉ साहब ने वहाँ काम कर रही एक महिला को कुछ इशारा किया और कुछ देर में पलाश की बनी चाय आ गई। यह चाय पीले रंग की थी। चाय का पहला घूंट भरते ही जो आनन्द मिला उसका वर्णन यहाँ कर पाना मुश्किल है। इतना स्वादिष्ट और स्फूर्तिदायक पेय पलाश जैसी मामूली चीज से बनता है और हमें पता ही नहीं।

बातें बहुत करनी थी बहुत सी चीजों की जानकारी लेनी बाकी थी लेकिन समयाभाव के कारण हमें वहाँ से जल्दी निकलना पड़ा। पूरे रास्ते हमारी बातों का विषय यही रहा कि कैसी अद्‍भुद चीजें हमारे आस-पास है लेकिन हम जानते ही नहीं और उनकी अवेहलना करते हैं।

संबधित कड़ियाँ

http://www.indiatogether.org/2006/aug/hlt-iodised.htm

http://www.virusmyth.com/aids/news/indiaconfrep.htm

इस पोस्ट के साथ ही हिन्दी चिट्ठाजगत में दस्तक के पाँच साल पूरे हुए , आप सभी के सहयोग के लिए धन्यवाद।

फोटो indiatogether.org से साभार

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63 सालों का इतिहास

Posted by सागर नाहर पर 5, सितम्बर 2010

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी ने लगभग बरसों पहले एक व्यंग्य लिखा था “तीस साल का इतिहास”! यह लेख जोशीजी ने उस जमाने की काँग्रेस के हालात पर लिखा होगा। आईये देखिये उस लेख के अनुसार कॉंग्रेस के तीस सालों का इतिहास और आज 63 सालों के इतिहास में कोई बदलाव आया है कि नहीं।

आज ही के दिन 5 सितम्बर 1991को शरद जोशी इस दुनिया से चले गये थे। उन्हें शत शत नमन्
लेख एवं चित्र स्व. शरद जोशी के जाल स्थल से साभार

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जब किसी के सपने पुराने हो जाते हैं, सांई के हो जाते हैं।

Posted by सागर नाहर पर 27, जून 2010

“उतरन ” धारावाहिक की शुरुआत में “इच्छा” एक टूटी फूटी गुड़िया हाथ में लेकर कहती थी। जब दूसरों के सपने पुराने हो जाते हैं तो वे हमारे हो जाते हैं

हमारे एपार्टमेन्ट के वाचमैन के बेटा  सांई भी ठीक इच्छा की तरह ही किसी की दी हुई एकदम टूटी साईकिल जिसको पैडल तो ठीक एक पहिये में तो टायर तक नहीं है; ऐसी साईकिल को  बड़ी शान से चलाता रहता है।

आज सांई का जन्म दिन है। देखिये सांई अपने नये कपड़ों में अपनी  सवारी पर। जब सांई अपनी इस सवारी पर बैठ एक हाथ में छतरी (जाहिर है वह भी टूटी ही होती है।)लेकर निकलते हैं तब उनका दबदबा देखते ही बनता है।

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यह लीजिये खजाने की चाबियों का गुच्छा!

Posted by सागर नाहर पर 26, अप्रैल 2010

आज की पोस्ट में कोई गाना नहीं सुनायेंगे पर आपको गाने के खजाने की चाबी नहीं बल्कि चाबियों का गुच्छा ही थमा देंगे। लूट लें जितना लूटने की हिम्मत आपमें है।

अन्तर्जाल पर गाने सुनाने वाले बहुत से जालस्थल हैं, पर वे सिर्फ फिल्मवाइज गाने ही सुनाते हैं या फिर गाने डाउनलोड करने की सुविधा देते हैं पर मैं आज आपसे एक ऐसे जालस्थल की बात करने जा रहा हूँ जो वास्तव में एक ओनलाईन रेडियो है.. नहीं था कहना चाहिये क्यों कि बदकिस्मती से अब यह बन्द हो चुका है।

इस जालस्थल का नाम है बोलीवुडओनडिमाण्ड.कॉम । यह साइट किन्हीं आभेश वर्मा Abhesh Varma की परिकल्पना थी। इस साइट पर हर तरह के संगीत के चाहकों के लिए कुछ ना कुछ था। मसलन अगर आप पॉप के दीवाने हैं तो आपके लिए Pop Up The Volume नामक कार्यक्रम था और इसके आर जे थे Shailabh। अगर आप गज़लों के शौकीन हैं तो आपके लिए प्रस्तुत है महफिल ए गज़ल! ये कार्यक्रम दैनिक होते थे, यानि जो कार्यक्रम सोमवार को आता है वह मंगलवार को नहीं; मंगलवार को कोई दूसरा कार्यक्रम आएगा! लेकिन आप एक हफ्ते के कार्यक्रम सुन सकते थे।

मैं जिस खजाने का जिक्र ऊपर कर चुका हूं वह खजाना यानि आप अगर पुरानी फिल्मों के गानों के शौकीन हैं तो आपके लिए है कार्यक्रम विन्टेज स्पेशल! इस कार्यक्रम के आर जे थे माणिक प्रेमचन्द जो फिल्म पत्रकार भी रहे हैं, संगीत के बहुत बड़े जानकार हैं और आपने कुछ पुस्तकें भी लिखी है उनमें से एक है Yesterday’s Melodies, Today’s Memories’। तो इस विन्टेज स्पेशल में एक से एक लाजवाब हिन्दी गानों को ना सिर्फ सुनाया जाता था बल्कि माणेक प्रेमचन्द उन के बारे में चर्चा भी की करते थे, और कई आश्‍चर्यजनक बाते भी बताते हैं जैसे कि 1962 की फिल्म पठान में 9 संगीतकार थे जो कि एक रिकॉर्ड हैं। गाने किस शास्त्रीय राग पर आधारित है? आदि सारी बातें इस कार्यक्रम में बताया जाता था। कई ऐसे दुर्लभ गीत सुनवाये जाते थे जिसके शायद ही अब रिकॉर्ड कहीं उपलब्ध हो। एक गाना मुझे याद आ रहा है जैसे कि उमादेवी (स्व.टुनटुन) का गाया हुआ फिल्म चंद्रलेखा का गीत .. साँझ की बेला जिया अकेला।

….हिन्दी फिल्मों के दुर्लभ गानों को सुनने के लिये पधारें हमारी गीतों की महफिल में

अब आप कहेंगे कि जब यह जालस्थल बन्द हो चुका है तो इसके बारे में बात करने का क्या फायदा? नहीं फायदा अभी भी है क्यों कि भले ही इस जाल स्थल पर नये कार्यक्रम १५ नवम्बर २००८ के बाद अपडेट ना हुए हों परन्तु १५ -११-२००८ तक प्रसारित हुए कार्यक्रम इस साइट पर अभी भी हैं, यानि आप इन्हें आसानी से सुन सकते हैं।

जैसा कि मैने ऊपर बताया कि सिर्फ एक हफ्ते के कार्यक्रम ही सुने जा सकते हैं परन्तु मैने इसके लिंक को कॉपी कर लिया और उस दिन के पहले आने वाले सोमवार की तारीख निकाल कर लिंक में वह तारीख जोड़ी और फिर उसे खोला तो मैं कामयाब रहा यानि कि पिछले कार्यक्रमों को भी सुना जा सकता था। मैने २००८ से लेकर २००५ (उल्टे क्रम में) में आने वाले सोमवारों की लिस्ट बनाई और लिंक को बदलता गया और गाने सुनता गया, मैं तो इन्हें पहले भी कई बार सुन चुका था पर संभव था कि कई छूटे भी तो होंगे। इसलिए एक दो दिन इसके लिए बर्बाद करने के बाद लिंक कॉपी कर लिए और गानों को कुछ देर चला कर पक्का कर लिया कि गाने चल रहे हैं और बाद में उन गानों को सुनता रहा।

कुछ दिनों बाद मुझे लगा कि इस आनन्द का मजा अकेले लूटना ठीक नहीं सबको इसका आनन्द लेने का मौका मिलना चाहिये सो मैं उन विन्टेज स्पेशल के वे सारे के सरे लिंक यहां आपके लिए पेस्ट कर रहा हूं.. क्यों हुआ ना यह खजाने की चाबियों का गुच्छा आपको सौंप देना। 🙂

इस खजाने के दुर्लभ और भूले बिसरे पुराने गीत सुनने के लिये आपको इन लिंक पर को कॉपी कर अपने ब्राऊजर में पेस्ट करना होगा। उसके बाद जब आप उस लिंक को खोलेंगे तब आपको सामने दिखेगा विन्टेज स्पेशल का लिंक; बस उस पर क्लिक करना है गाने बजना चालू हो जायेंगे।

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=11/10/08

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=10/27/08

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=10/13/08

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http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=01/09/06

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=01/02/06

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=11/28/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=11/21/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=11/14/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=11/07/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=10/31/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=10/24/05

http://www.bollywoodondemand.com/index.cfm?selectedDate=10/17/05

इस पोस्ट पर आर जे Shailabh की आई टिप्पणी ने लिंक्स को एक ही पेज में इकट्ठा देखने का मजेदार तरीका सुझा दिया यह लीजिए एक ही पेज पर विन्टेज स्पेशल के बहुत से लिंक, धन्यवाद शैलाभ
http://bod.co.in/showdetails.cfm?showname=Vintage%20Special

इस जालस्थल पर कुछ और कार्यक्रम:

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धोबी से ना जीत पावें तो गदहे के कान उमेठे

Posted by सागर नाहर पर 16, अप्रैल 2010

क्या यह कहावत इन्हीं मूर्ख सरकारी अधिकारियों के लिए तो नहीं बनी होगी, जिन्होने यह मूर्खतापूर्ण कदम उठाया

आंध्र प्रदेश सचिवालय हैदराबाद , के बाहर २४ घने पेड़ों को बिला वजह काट दिया गया। इनमें से तो कुछ नीम के भी थे।

किसी का कहना है नक्सलवदियों के आकस्मिक हमले से बचने के लिए यह पेड़ काटे हैं तो किसी का कुछ और लेकिन सही जवाब किसी के पास नहीं।

लेकिन इन पेड़ों के नीचे इस तपती गर्मी में थकान उतारने के लिए दो पल रुकने वालों और ना जाने कितने ही पंछियों को कौन जवाब देगा कि उनका आसरा क्यों छीना गया?

फोटो द हिन्दू “The Hindu” से साभार

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दस्तक ने किए चार साल पूरे

Posted by सागर नाहर पर 12, अप्रैल 2010

पिछले महीने की बारह तारीख को दस्तक ने हिन्दी चिट्ठा जगत में अपने चार साल पूरे कर लिये। पोस्ट दस तारीख को ही लिख ली पर हमेशा की तरह आलस के चलते आज एक महीने बाद पोस्ट कर रहा हूं।

दस्तक चिट्ठा ने आज अपने चार साल पूरे कर लिये, यानि आज इस चिट्ठे की पाँचवी वर्षगांठ है। पिछले पांच सालों में कई नये मित्र बने। आलस के मारे चिट्ठा लिखन कम हुआ तो धीरे धीरे दोस्त भी कम होने लगे। फिर भी कई ऐसे मित्र हैं जिनसे आज भी नियमित सम्पर्क बना रहता है।

पिछले दो सालों में कई चिट्ठाकरों से प्रत्यक्ष मिलने और उनसे बात करने का सौभाग्य प्राप्‍त हुआ, उनमें से कुछ नाम है, रवि रतलामी जी, यूनुस खान जी, रेडियो सखी ममताजी, अफलातून जी, डॉ रमा द्विवेदीजी, डॉ कविता वाचनक्कवी जी, शैलेष भारतवासीजी, रंजनजी मोहनोत, रेडियो प्रेमी पियुष भाई मेहता और टी पवनजी।

एक और खास मित्र से मुलाकात हुई उनका नाम है श्रीनिवास जी घंटी। श्रीनिवास जी हिन्दी फिल्मों के चलते फिरते इनसाइक्लोपीडिया हैं। लगभग हर फिल्म के गाने के बारे में पूरी जानकारी उन्हें मुखजबानी याद है। कई गीतों के बोल (Lyrics) आपने गीतायन पर चढ़ाये हैं। कुछ और भी मित्रों के नाम मैं अभी भूल रहा हूँ।

इन मित्रों के अलावा लवली गोस्वामी, गरिमा, कविता वर्मा जी, रचना जी, अनुराग अन्वेषीजी,इरफान जी, पारूलजी, मीतजी, आदि से अक्सर गूगल चैट पर बातें होती रहती है।

इन चार सालों में साथ और स्नेह देने के लिये आप सब मित्रों और पाठकों का हार्दिक धन्यवाद।

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मसाला केप्सिकम और जास्मीन तेल

Posted by सागर नाहर पर 11, अप्रैल 2010

चौंक  गए ना ऐसा अजीबोगरीब शीर्षक पढ़ कर.. !

पिछले साल खाना बनाने के कटु अनुभव के बाद सोच लिया था कि इस बार पहले से ही तैयारी कर लेनी पड़ेगी, और हर्ष भी इस बार गाँव नहीं जाने की जिद कर रहा है। सो हम दोनों के पेट का बंदोबस्त तो करना ही होगा। सो इस बार पूर्व तैयारी के चलते यदा कदा सब्जी वगैरह बनाता रहता हूं। कई सब्जियों में तो अच्छी खासी मास्टरी हो गई है।

परसों जो सब्जी घर में बनी थी वो जरा कम पसन्द होने की वजह से मैने शिमला मिर्च बनाने का निश्चय किया। तिल, नारियल, मूंगफली और खसखस की बढ़िया ग्रेवी और फिर टमाटर प्यूरी आदि डाल कर एकदम बढ़िया सब्जी बना ली।

सब्जी जब बनने को आई तो मैने मसाले चखने के लिहाज से एक चम्मच सब्जी, गैस के पास की खिड़की में में रखी कटोरी में ले ली, और जैसे ही चखने के लिये उसे उठाया तो उसमें थोड़ा पानी दिखा। मैने सोचा पानी से मसाले का सही पता नहीं चलेगा सो मैने उस कटोरी वाली सब्जी को पानी सहित कढ़ाई में डाल कर हिला दिया। तभी अचानक मुझे सब्जी में से कुछ अजीब सी गंध आने लगी। श्रीमती जी को बुलाया तो उन्हें भी उस अजीब सी गंध से आश्‍चर्य हुआ। तभी पास में रखी कटोरी को देख कर पूछा इसमें सब्जी कैसे आई? मैने कहा मैने चखने के लिए ली थी पर उसमें पानी था इसलिये मैने वापस कढ़ाई में डाल दी।

श्रीमती जी अपने सर पर हाथ रख कर बोली है भगवान! ये आपने क्या किया? ( भगवान मुझे नहीं कहा था 🙂 ) मैने पूछा क्यों क्या हुआ?

उन्होने कहा अरे! आज सुबह पेराशूट जास्मीन हेर ऑइल के दो पाऊच खॊले थे और पाउच में बहुत सा तेल दिख रहा था सो पाऊच को इन पर उल्टा रख दिया था जिससे धीरे धीरे तेल इस कटोरी में जमा हो जाये। मैने कहा जब मैने देखा था तब खाली पाऊच नहीं थे तो उन्होने कहा उन्हें तो अभी पांच मिनिट पहले ही मैने कचरे में डाले थे और कटोरी को बॉटल में खाली करने जा ही रही थी कि सब्जी वाला आ गया तो पहले सब्जी लेने चली गई……

अब इतनी मेहनत से बनाई सब्जी को फेंकने की हिम्मत जुटाने से पहले सोचा एक चम्मच खा कर देखने में क्या हर्ज है शायद खाने लायक हो!

बस यहां से एक नई परेशानी हो गई। मैने फुलके (रोटी) का एक कौर तोड़ कर सब्जी के साथ खाया कि उबाईयां आने लगी…उल्टी होते होते बची।  सब्जी में से जास्मीन तेल की गंध….!!! उधर गैस चालू था और सब्जी में तेल मिक्स हो कर पूरे घर में जास्मीन तेल की महक आने लगी। पूरे दिन जास्मीन तेल की दकारें आती रही ।  आज उस बात को तीन दिन हो गये हैं पर मेरे दिमाग में से वो गंध नहीं निकल रही घर में. खासकर रसोई में तो जाना भी दु:भर सा हो गया है। घर में कोई सिर में जास्मीन तेल लगाता है तो मैं बैचेन हो जाता हूं।

आखिरकार इतनी मेहनत से बनाई सब्जी अपने ही हाथों से फेंक देनी पड़ी। भगवान ये मेरे साथ ही क्यों होता है?

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आपने सुरत के रसावाले खमण खाये हैं कभी?

Posted by सागर नाहर पर 24, फ़रवरी 2010

खाने पीने के मामले में सुरतीलालाओं का मिज़ाज़ बड़ा गज़ब का है, उन्हें ये रात दस बजे ये पता चले की वहां एक चाय का ठेला खुला है और क्या मस्त चाय बनती है तो फटाफट अपनी गाड़ी निकाल कर एक कट चाय पीने चले जयेंगे। कट चाय भले ही तीन की आती हो पर बीस रुपये का पेट्रोल खर्च करने में उन्हें बिल्कुल संकोच नहीं होता। आज भी काकी की पावभाजी खाने 18 किलोमीटर दूर कड़ोदरा चार रास्ता और एक अमरीकन मक्के का भुट्टा खाने के लिए दस किलोमीटर दूर कामरेज रोड़ पर आज भी लाइनें लगती है।

सुरत में खाने की एक से एक चीजें मिलती है जो आपको सुरत के अलावा कहीं नहीं मिलेगी और अगर मिल भी गई तो वो स्वाद नहीं मिलेगा जो सुरत में मिलता है। कई प्रख्यात चीजों में सुरती खमण सबसे खास है और ऊंधियु (ઉંધિયુ) हरे नारियल की पेटिस(લીલા નારેળ ની પેટીસ), गोटा (મેથી ના ગોટા) , लोचा (લોચો), खमणी (ખમણી ) , रतालु पूड़ी ( રતાળુ પુડી), घारी(ઘારી), पोंक(આંધણી વાની પોંક), राजा की लस्सी (રાજા ની લસ્સી) रेल्वे स्टेशन के सामने की  नवरंग की आईसक्रीम, बोम्बे ज्यूस का थिक शेक जिसे आपको मोटी स्ट्रा से खींच कर पीना पड़ता है आदि है।

इनमें से पोंक तो हरी ज्वार की बालियां होती है जिन्हें सर्दी के दिनों में राख (आंधळी वानी) में पकाया जाता है और फिर काली मिर्च की तेज बारीक पतली सी सेव (नमकीन ) के साथ खाया जाता है। बस इसका स्वाद बस खाकर ही अनुभव किया जा सकता है। एक चीज और भी है घारी जिसे चंदवी पड़वे के दिन ( शरद पूर्णिमा के दूसरे दिन) खाया जाता है और एक दिन में सुरती लाला लगभग 10 करोड़ की घारी खा जाते हैं।
ये हे सुरती खमण

आज से लगभग पैंतीस साल पहले ऐसे ही एक सुरती भाइयों की जोड़ी अशोक भाई और जेन्ती भाई  ने सुरतीयों के स्वाद शौक को ध्यान में रखकर कोई नई चीज बनाने का निश्चय किया और उसके बाद जो  चीज (वानगी ) बनी उसका नाम दोनों भाईयों  ने रखा रसावाळा खमण! (રસાવાળા ખમણ ) और उसके खाने के बाद खाने वाली लस्सी! (जी हां  एकदम गाढ़ी होने के कारण इस लस्सी को खाना पड़ता है आप इसे आसानी से पी नहीं सकते )

आज  इतने सालों के बाद भी रसावाळा खमण सुरती लोगों की पहली पसंद में से एक है। पहले चौक बाजार में गुजरात मित्र प्रेस के पास की गली में एक ठेले पर यह दुकान चालू की  और जब इसका स्वाद लोगों को भा गया तो इतनी भीड़ पड़ने लगी कि बाद में  रोड़ पर जगह जब कम  पड़ने लगी  और फिर  पास में ही एक दुकान में इस काम को चालू किया आज हाल यह  है कि  यह दुकान भी छोटी पड़ती है, और लोग रोड़ पर खड़े होकर इसे खाते हैं। और हां  इन्होसुरत के प्रख्यात जलाराम रसावाले खमण ने  आज भी अपने ठेले को  नहीं छोड़ा, दुकान भले ही बड़ी है लेकिन माल तो ठेले पर ही बिकता है।

आपने खमण के बारे में जरूर सुना होगा इसे लोग ढोकळा भी कहते हैं । लेकिन सुरत से बाहर यह स्पंज रूप में मिलता है जिसे लोग नायलोन खमण कहते हैं| अहमदाबादी नायलोन खमण में तो इतना मीठा पानी डाला जाता है कि उन्हें निचो कर शर्बत के रूप में पी लो। सुरती खाद्य चीजें बाकी गुजरात से एक मामले में अलग होती है। जहाँ पूरे गुजरात में मीठी चीजें पसंद की जाती है ( कई जगह तो  होटलों में तो  पंजाबी चना मसाला में भी  मीथी दाल की तरह गुड़ डाला जाता है)  वहीं सुरत की चीजों में तीखापन या तेज मिर्ची  ज्यादा होती है।

अशोक भाई -जेन्ती भाई का रसावाळा खमण भी बहुत तेज स्वाद  वाला  होता है।  खमण में एक तरह का  सब्जी  डाल कर ग्राहक को दी जाती है, ( इस सब्जी की रेसेपी वे नहीं बताते)  जिसे खाते समय आपके  एक हाथ में रुमाल होना जरूरी है; नाक और आँख पोंछने के लिए। आपकी आँखों से आंसू बहते जायेंगे या नाक बहने लगी इस के तेज स्वाद की वजह से लेकिन आप इसे  पूरा खाये बिना इसकी प्लेट नहीं छोड़ सकते।

मिथुन भाई अपनी दुकान पर
आज अशोक भाई के पुत्र मिथुन भाई (9974622890) इस व्यवसाय को बखूबी संभाल रहे हैं। रसावाले खमण के साथ हांडवो, खमणी और भी कई चीजें है पर लोगों की पहली पसंद तो रसावाला खमण ही है।  मिथुन भाई कहते हैं   कि पिछले दिनों एनडीटीवी के विनोद दुआ भी उनकी दुकान पर आकर अपने कार्यक्रम “जायके का सफर” के लिए    रसावाला खमण का स्वाद चख चुके हैं।  कई किताबों में उनकी इस डिश के  बारे  में छप चुका है।  साथ में मिथुन यह कहना भी नहीं भूलते कि रसावाले खमण खाने के बाद जब तक आप हमारी लस्सी नहीं पीएंगे मजा नहीं आयेगा।जैकी भाई लस्सी वाला

उसी दुकान के एक हिस्से  में जेन्ती भाई के  पुत्र जैकी भाई (फोन: 09898277441 ) अपने पिताजी का  लस्सी का कारोबार संभालते हैं, मैं रसावाले खमण से तृप्त  होकर मुंह से सीऽऽ सीऽऽ की आवाज करते हुए जैकी भाई की तरफ बढ़ता हूं तो जैकी भाई यह जानकर कि मैं हैदराबाद से आया हूं और अपने ब्लॉग में उनके बारे में लिखने वाला हूं  वे अपने दुकान की पाँच अलग अलग तरह की लस्सी की सुरती लस्सी गिलासें तैयार करवाते हैं।  लगभग हर जगह लस्सी में मलाई या आईसक्रीम ऊपर  से डाली जाती है लेकिन जैकी भाई इनमें श्रीखंड डालते हैं। खमण की एक प्लेट खाने के बाद मुझमें इतनी बड़ी गिलास लस्सी पीने की ना हिम्मत थी ना पेट में जगह सो एक छोटी गिलास पीने का आग्रह मैं टाल नहीं पाता, मुझे उनकी अड़धी ग्लास (आधी गिलास)  बहुत भारी पड़ रही है अब साँस लेने की जगह भी पेट में नहीं बची।

सुरती लोग जितना खाने के शौकीन होते हैं उतने ही खिलाने के और मेहमान नवाजी में तो उनका सानी कोई नहीं। जाते जाते मिथुन भाई की दुकान के बाहर दो लोगों को खमण खाते हुए बात करते सुनता हूं साल्लु आजे तो बहु तीख्खू छे @#$%^&* ( यहां वे अपने वाक्य के अंत में एक सुंदर सी गाली देना नहीं भूलते)  अरे! मैने आपको सुरत की  इतनी चीजें  अच्छी अच्छी चीजों के बारे  में बताया लेकिन  एक और खास चीज के बारे में बताना तो भूल ही गया; और वो है सुरत की गालियां! पक्के और  सच्चे सुरती  लोगों के मुँह से निकले एक वाक्य में अगर तीन गालियां ना निकले तो समझ लीजिये की बच्चा अभी नादान है, सुरत के रंग में नहीं रंगा।

मैं सच कह रहा हूँ ना अलबेला खत्री जी और पीयूष भाई मेहता जी?

(यह माईक्रोमेक्स का क्यू थ्री (Micromax Q3) एकदम बकवास फोन है बातें बड़ी बड़ी करते हैं और कैमरा  एकदम रद्दी है।आपने ऊपर के फोटो देखे हैं,  अगर इसके विज्ञापन से प्रभावित हो कर खरीदने की सोच रहे हैं तो ना ही खरीदें, पछतायेंगे।)

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